पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/४४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०७
गुजरातकी तैयारी

कर रहा हूँ। थोड़े ही दिनों में मौलाना मुहम्मद अली आ जायेंगे, इस आशयका उनका तार मिला है। चौथी तारीख के बाद देशबन्धु चित्तरंजन दासके भी आनेकी सम्भावना है। मैं इनसे मुलाकातकी बाट जोह रहा हूँ।

इस बीच

कोई मेरे विचारोंकी बाट देखते हुए बैठा न रहे। मैं कौंसिलोंमें प्रवेश के सम्बन्ध में चाहे जो भी विचार व्यक्त करूँ इससे न तो चरखेकी प्रवृत्ति में कोई परिवर्तन होगा और न राष्ट्रीय शिक्षा में। इन दोनों कार्योंमें अगर हम अपना सारा समय लगायें तो भी उन्हें न तो तुरन्त पूरा किया जा सकता है और न सुव्यवस्थित बनाया जा सकता है। और यह न हुआ तो हम कभी भी सविनय अवज्ञा के लिए तैयार होनेवाले नहीं हैं।

इसी तरह हिन्दु-मुस्लिम एकता की मैं भले ही कोई दवा क्यों न सुझाऊँ फिर भी एक-दूसरे के प्रति सच्चा प्रेम रखने की जरूरत तो सदा बनी रहेगी, इसमें कोई भी परिवर्तन नहीं होनेवाला है। हमें एक-दूसरेकी सेवा करनी है, उसके सम्बन्ध में कोई भी शंका नहीं होनी चाहिए। इस तरह विचार करनेपर हमें मालूम पड़ेगा कि मैं जब अपने विचारोंको अभिव्यक्त करूँगा तब हमें आज जो कार्य करने हैं उन्हें उस समय और भी दृढ़तासे निभाना होगा। इसलिए जिन्हें मेरे विचारोंके प्रति श्रद्धा है, वे अगर अबतक अपने कर्त्तव्यके प्रति लापरवाह और आलसी रहे हैं तो उन्हें आलस्य छोड़कर जाग्रत हो जाना चाहिए और अपने कर्त्तव्य में जुट जाना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ६-४-१९२४
 

२९५. गुजरातकी तैयारी

गुजरातका पिछले दो वर्षका इतिहास उसकी कीर्तिको बढ़ानेवाला है। जिस बातसे गुजरातकी कीर्ति हो उससे सारे देशकी कीर्ति भी होती है। हमारा काम ऐसा है कि उसकी जिस बातसे एक प्रान्तको लाभ हो, उससे समस्त भारतवर्षको लाभ होता है। अतः जिस हदतक गुजरात आगे बढ़ा है उस हदतक सारा देश आगे बढ़ा है। वल्लभभाईकी[१] कार्य-दक्षता हरएक काममें दिखाई पड़ती है। जैसे वे हैं वैसे ही उनके साथी हैं। बोरसद सत्याग्रह उनके उद्यमका उज्ज्वल उदाहरण है।

बोरसद सत्याग्रह खेड़ा सत्याग्रहसे[२] बहुत ऊँचे दरजेका है। खेड़ाकी जीत केवल मानकी जीत थी। अहमदाबाद के मिल मजदूरोंकी जीत मेरे उपवासके कारण फीकी पड़ गई थी, क्योंकि मिल मालिकोंपर उस उपवासका नाजायज दबाव पड़ा था।[३]

  1. सरदार वल्लभभाई पटेल (१८७५-१९५०)।
  2. देखिए खण्ड १४।
  3. देखिए खण्ड १४, पृष्ठ २५३-५८।