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श्रीमती सरोजिनी और खादी


इस तमाम कामका जब मैं विचार करता हूँ, तब जेलकी शान्ति याद आती है। पर मैं जानता हूँ कि यह तो कायरताकी निशानी है। मैं जेल में था तो लोगोंने मुझे छुड़ानेकी भारी कोशिश की। परन्तु स्वराज्य मिलनेसे पहले छूटकर क्या मुझे शान्ति मिल सकती है? बाहर निकलनेके बाद मैंने इस बातको अधिक अनुभव किया है कि जेलका निवास भी मनोविनोदका एक प्रकार हो सकता है। बाहर आनेपर इन कामों में क्या भाग ले सकूँगा—इस बातका विचार करते हुए अपनी कमजोरीकी सुध मुझे दुःख देती और शर्मिन्दा करती है। फिर इस भयसे मेरा दुःख और बढ़ जाता है कि अब मैं बाहर आ गया हूँ इसलिए मुझे छुड़ानेके लिए जो उत्साह लोगों में थ वह शायद मन्द पड़ जायेगा। अतएव मैं गुजरातके लोगों को उस चेतावनीकी फिर याद दिलाता हूँ, जो मैंने दो साल पहले दी थी। हमारे तमाम काम स्वराज्य के निमित्त होने चाहिए। जबतक सारा हिन्दुस्तान जेलमें पड़ा है तबतक हम खामोश बैठ ही नहीं सकते। मैं गुजराती भाई-बहनोंसे यह चाहता हूँ कि आपका जो प्रेम मेरे प्रति है, उसे आप स्वराज्य-सम्बन्धी कामों में ही लगायें।

[गुजरातीस]
नवजीवन, ६-४-१९२४
 

२९६. श्रीमती सरोजिनी और खादी

जब मैं पूनाके अस्पतालमें था तब मुझे पूर्व आफ्रिकासे एक पत्र मिला था। उसमें पूर्व आफ्रिकाके हिन्दुस्तानियों को खादी पहननी चाहिए या नहीं, इस विषयपर श्रीमती सरोजिनी नायडू के विचार दिये गये थे। पत्र तो खो गया, परन्तु उसमें उद्धृत इन विचारोंका, जिन्हें प्रेषकने श्रीमती नायडूका बताया है, सार इस प्रकार है :

"गांधीजीकी राय है कि खादीका व्रत केवल हिन्दुस्तान के लिए है। विदेशों में उसकी जरूरत नहीं है, यही नहीं बल्कि वहाँ उसे छोड़ देना चाहिए और अंग्रेजी लिबास पहनना चाहिए। यदि गांधीजी खुद पूर्व आफ्रिकामें आयें तो वे खादी की लँगोटी नहीं पहनेंगे, बल्कि श्री वर्माकी तरह विलायती कपड़े पहनेंगे और आपको भी ऐसा ही करना चाहिए।"

मुझे इस बात में सन्देह है कि श्रीमती नायडूने ऐसी बात कही होगी। पूर्व आफ्रिकी पत्र लेखकने इन विचारोंके सम्बन्धमें मेरी राय माँगी है। वे लिखते हैं कि पूर्व आफ्रिका में बहुतसे हिन्दुस्तानी खादी के कपड़े पहनते हैं और खादीकी टोपी भी लगाते हैं। वे सब लोग श्रीमती नायडूके भाषण से उलझन में पड़ गये हैं।

मैं मानता हूँ कि खादीका व्रत विदेशों के लिए नहीं है। विदेशों में इस व्रतका पालन बहुत बार नितान्त असम्भव भी हो जाता है। फिर इस व्रतका उद्देश्य है भारतकी आर्थिक आजादी, अतः भारतसे बाहर उसका पालन करने की आवश्यकता नहीं। परन्तु मेरी यह राय न तो पहले थी और न अब है कि विदेशों में जहाँ खादी आसानीसे पहनी जा सकती है, वहाँ भी न पहनी जाये। मेरा खयाल यह भी है