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अस्पृश्यता और दुरदुरानेकी मनोवृत्ति

सभ्यता तो ऐसी है कि मेरे जैसोंका मात्र लँगोटी पहनना भी अशिष्ट नहीं माना जाता। यहाँ लिबाससे परीक्षा नहीं होती। परन्तु दूसरे देशों में लँगोटी काम नहीं दे सकती। यदि मुझे विदेशों में जाना पड़े तो मैं लँगोटीको खुशीसे सन्दूकमें बन्द करके रख दूंगा। दूसरे देशोंमें घुटनोंतक पाँवोंको ढकने की जरूरत मालूम होती है।। 'जैसा देश वैसा भेस' यह कहावत सर्वथा निरर्थक नहीं है। यदि हम बिना जरूरत ऐसा काम करें जिससे दूसरे देशों के लोगों के मनको आघात पहुँचे तो इसे सब लोग अशिष्ट ही कहेंगे। मैं इसे हिंसा कहूँगा। अशिष्टतामें हिंसा होती ही है।

पूर्व आफ्रिका पत्रपर विचार करते हुए यहाँ मैं यह भी बता दूँ कि वहाँ खादी-प्रचार किस तरह किया जा सकता है। पूर्व और दक्षिण आफ्रिकामें सिले हुए कपड़े बहुत जाते हैं। वहाँके आदिम निवासियों तथा हिन्दुस्तानियों के इस्तेमाल के कपड़े यहाँसे बनवाकर ले जाये जा सकते हैं। वहाँके होशियार व्यापारी थोड़ा प्रयत्न करें तो लाखों रुपये की खादी बड़े मजे में बेच सकते हैं। हिन्दुस्तान अभी उतनी खादी तैयार नहीं करता जितनी उसके लिए जरूरी है। खादीकी बुनाई और बिक्री अभी सिन्धुमें बिन्दुके बराबर है; यह मैं न जानता होऊँ सो बात नहीं। किन्तु खादी-प्रचार अभी इतना मन्द है कि कितनी ही जगह खादी भरी पड़ी है। यह बात कितनी आश्चर्यजनक और कितनी दुःखजनक है। इसीका विचार करके मैंने पूर्वोक्त सुझाव दिया है। गुजरात में जमा खादी तो दक्षिण आफ्रिकाका एक ही व्यापारी आसानीसे ले जा सकता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ६-४-१९२४
 

२९७. अस्पृश्यता और दुरदुरानेकी मनोवृत्ति

हिन्दुओं के पापका पुंज कोई छोटा-मोटा नहीं है। शास्त्र परमार्थकी शिक्षाके लिए हैं किन्तु हमने उन्हें स्वार्थका साधन बना दिया है। शास्त्रमें निहित शाश्वत सिद्धान्तोंको छोड़कर हमने उनके उन श्लोकोंको स्थायी रूप प्रदान किया है जो केवल अस्थायी व्यवहारके लिए उपयोगी थे और इस तरह दुराचारको धर्मके स्थानपर प्रतिष्ठित कर दिया है। मेरी आत्मा इस बातकी दिन-प्रतिदिन अधिक साक्षी देती जाती है कि अस्पृश्यता एक ऐसा ही दुराचार है। और मानो अस्पृश्यताका पाप पर्याप्त न हो, उसकी इस कमीको दूर करनेके लिए अब उन्हें दूर रखने के पापकी खोज की गई है। दक्षिण में अर्थात् मद्रासमें तो उस पापसे लोग परिचित हैं। लेकिन इन दुरदुराये जानेवाले लोगोंकी सेवाके लिए और अपने पापके प्रायश्चित्तके लिए, कांग्रेस के स्थानिक हिन्दू सदस्योंने त्रावणकोरमें सत्याग्रह आरम्भ किया है।[१] त्रावणकोर हिन्दू राज्य है। वहाँ अस्पृश्योंको दूर रखनेका यह पाप पूरे जोरके साथ फैला हुआ है।

  1. वाइकोममें हिन्दूके प्रतिनिधिने इस सत्याग्रहके सम्बन्धमें गांधीजीसे भेंट की थी और गांधीजीने १७ मईको वाइकोम सत्याग्रह समितिके प्रतिनिधियों से बातचीत की थी।