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२९८. पत्र : एलिजाबेथ शार्पको

पोस्ट अन्धेरी
६ अप्रैल, १९२४

प्रिय कुमारी शार्प,

आपके हार्दिक और स्पष्ट पत्रके लिए धन्यवाद।

मैं जानता हूँ कि आपने जो विविध प्रश्न[१] उठाये हैं, उनके विषयमें आप मुझसे किसी चर्चाकी अपेक्षा नहीं रखतीं; बल्कि आप चाहती हैं कि मैं उनपर मनन करूँ। मैं निश्चय ही उनपर मनन करूँगा। किन्तु मुझे आपसे यह बात नहीं छिपानी चाहिए कि आपके और मेरे दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। किन्तु जबतक हम सत्यशोधक बने रहते हैं तबतक इससे कुछ बनता बिगड़ता नहीं।

हृदयसे आपका,

कुमारी एलिजाबेथ शार्प
श्रीकृष्ण निवास
लीम्बडी
काठियावाड़

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६८४) की फोटो-नकलसे।
  1. कुमारी एलिजाबेथ शार्पने अपने ३ अप्रैलके पत्रमें गांधीजीसे अनेक प्रश्न किये थे :
    "... क्या आप समझते हैं कि आपने भारतीयोंके हृदयमें अपने प्रति अन्यायको दुःखद भावना—सत्य या कल्पित—उत्पन्न करके भारतका कोई हित किया है? क्या आप समझते हैं कि श्रीमती नायडूके 'घृणा' उत्पन्न करनेवाले उत्तेजक भाषण कोई 'सु' कर्म हैं? क्या आप समझते हैं। कि ग़लत काम करते चले जानेका परिणाम अच्छा निकल सकता है? क्या लौकिक सत्ताको पाकर भारत अपनी आध्यात्मिकतासे हाथ नहीं धो बैठेगा? क्या आप यह अनुभव नहीं करते कि भारत अपनी भौतिक दरिद्रताके कारण ही आध्यात्मिक दृष्टिसे समृद्ध है? क्या आप यह अनुभव नहीं करते कि मनुष्य ईश्वर और शैतान दोनोंकी साथ-साथ पूजा नहीं कर सकता? यह कितने बड़े दुःखको बात है कि भारतीयोंकी जो शक्ति कभी 'ब्रह्मदर्शन' में लगती थी वह उन्मादवश व्यर्थ नष्ट की जा रही है। अब भी संसार में भारत ही ऐसा एक स्थान है जहाँ शान्त और स्थिर मनसे हम सांसारिकताका त्याग कर सकते हैं।. . . यहाँ हम चाहे जहां आने-जाने, भिक्षावृत्ति और प्रेम एवं अपने-अपने ढंगले ईश्वरकी खोज करनेके लिए स्वतन्त्र हैं। क्या यह स्वतन्त्रता सर्वाधिक बड़ी स्वतन्त्रता नहीं है? आपका जीवन सच्चा जीवन है और आपमें भलाई करनेकी अपार शक्ति है। आप कृपा करके इस पृथ्वीपर मनुष्यकी दशाको बिलकुल चिन्ता न करें। यह तो उनके पिछले पाप कर्मो का फल है। आप उनके आत्मिक उद्धारका ही ध्यान रखें और उनके सांसारिक बन्धनोंको काटें। मैं यह बात आपको इसलिए लिखती हूँ कि आप भारतीय होनेसे इसे पूरी तरह समझ पायेंगे। पश्चिमके लोग मेरी बातके मर्मको बिलकुल नहीं समझेंगे क्योंकि वे तो केवल इस जन्ममें ही विश्वास करते हैं. . ." (एस॰ ए॰ ८६४६)