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पत्र : हरिभाऊ पाठकको
तुमको और तुम्हारी पत्नीको मेरा स्नेह,

हृदयसे तुम्हारा,

श्रीयुत जॉर्ज जोजेफ
कुजुवापुरम्
चेंगानूर ( त्रावणकोर )

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८६८८) से।
 

३०३. पत्र : हरिभाऊ पाठकको

पोस्ट अन्धेरी
६ अप्रैल, १९२४

प्रिय हरिभाऊ,

मैं साथमें लोकमान्यसे अपनी बातचीतका एक संस्मरण भेजता हूँ।

हृदयसे तुम्हारा,
मो॰ क॰ गांधी

श्रीयुत हरिभाऊ पाठक
मन्त्री
नगर कांग्रेस कमेटी
पूना
[संलग्न]

मुझे लोकमान्यसे मिलनेका बीसियों बार सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मुझे उनसे परिचयका प्रथम अवसर १८९६ में उस समय मिला[१] जब मैं नेताओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने और दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय प्रवासियोंके मामले में उनकी सहायता माँगने के लिए पूना आया था। उनसे मेरी अन्तिम भेंट बम्बई में हुई थी। तब उत्तर भारतके दौरेपर रवाना होनेसे पहले मैं और मौलाना शौकत अली सरदारगृहमें उनसे मिले थे। जब हम दौरेसे लौटे तब हमें यह खबर मिली कि लोकमान्य तो बहुत ज्यादा बीमार हैं। मैं उनके दर्शन करने गया किन्तु इतना ही हो सका। हमारी कोई बातचीत नहीं हुई। मैं केवल पिछली बारका संस्मरण समयानुकूल होनेके कारण यहाँ देना चाहता हूँ। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानोंके सम्बन्ध में मौलानाकी ओर मुँह करके कहा था : "गांधी जो कुछ कह रहे हैं मैं उसीपर हस्ताक्षर कर दूँगा, क्योंकि इस प्रश्नपर मेरा उनमें पूरा विश्वास है।" असहयोग के सम्बन्ध में उन्होंने मुझसे जो बात पहले कही थी वही विशेष रूपसे फिर कही, "मैं इस कार्यक्रमको

  1. देखिए खण्ड २, पृष्ठ १४७

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