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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होती उसी प्रकार चरखेके बिना भी उसकी शोभा नहीं है। घरके छोटे-बड़े गाय दुहने को कोई नीच काम नहीं मानते। उसी तरह छोटे-बड़े सब लोगोंको चरखा कातनेमें कोई हलकापन न मानना चाहिए, बल्कि उसे अपने घरके एक आवश्यक कामकी तरह करना चाहिए। गाय तो कभी-कभी मार भी बैठती है, खली-भूसी चाहती है। पर चरखा तो ऐसा परोपकारी है कि वह न तो कभी किसीको मारता है और न कुछ खानेको ही माँगता है। उसके पाससे सफेद दूधकी तरह सूत जब चाहे तब ले लीजिए। गाय तो अपनी शक्तिके अनुसार दूध देती है, पर चरखा तो हमारी शक्तिके अनुसार सूत देता है। चरखेकी रक्षा गोरक्षाके ही समकक्ष है। जो लोग चरखेकी रक्षा करना चाहते हैं उन्हें ऐसी ही खादी काममें लानी चाहिए जिसमें ताना और बाना दोनोंका सूत हाथ कता हो।

प्रान्तीय कमेटियोंको खादी बेचने के लिए विज्ञापन देने पड़ते हैं। इससे मुझे शर्म मालूम होती है। हरएकको शर्त मालूम होनी चाहिए। परदेशी अथवा मिलके बने कपड़ेका तो बिकना, पर खादीका पड़ा रहना—इसे भारत के उदयका चिह्न नहीं कहा जा सकता। यह तो गेहूँको छोड़कर भूसी खाने जैसी बात हुई।

चरखे के उद्धारके बिना गोरक्षा प्रायः असम्भव हो गई है। भारत के किसानोंके पास धन नहीं है। इससे वे अपने मवेशी बेच डालते हैं अथवा उन्हें भूखों मारते हैं। जिस प्रकार भारत के आदमी दुर्बल हैं उसी प्रकार मवेशी भी दुर्बल हैं। क्योंकि भारतकी हालत दिवालियेकी-सी हो रही है। भारत आज अपनी पूँजीपर जी रहा है। इससे वह पूँजी दिनपर-दिन कम होती जाती है। भारतको काफी प्राण-वायु ही नहीं मिल रही है। इससे उसका दम घुट रहा है। भारतको कमसे कम चार मास अनिच्छापूर्वक बेकार रहना पड़ता है। इस प्रकार जिसे निरुद्यमी रहना पड़ता हो उसका विनाश न हो तो क्या हो? भारतके करोड़ों लोगों के लिए अपने खेतोंका सहायक उद्यम चरखा ही है, दूसरा नहीं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ५–३–१९२२
 

४. टिप्पणियाँ
कांग्रेसका कर

लोगों के मनपर जिसका शासन हो उसे हमेशा कर मिल जाता है। भारतमें कितने ही बड़े-बड़े मन्दिर हैं। उनका खर्च भक्तजन स्वेच्छासे चलाते हैं; उसके लिए किसी प्रकारका परिश्रम नहीं करना पड़ता। काशी विश्वनाथ के मन्दिरपर सोनेका कलश है। उसके लिए क्या स्वयंसेवक लोग घूमते फिरे थे? श्रद्धावान् लोगोंने खुद ही उसके लिए दान दिया। अमृतसरमें सिखोंके गुरुद्वारे में बिल्लौरका फर्श है, चाँदी के दरवाजे हैं, गुम्बजपर सोना चढ़ा हुआ है, इसीसे वह स्वर्णमन्दिर कहलाता है। इसमें जो सम्पत्ति है वह भी श्रद्धालु सिख लोगोंने अपनी इच्छासे दी है। ये आलीशान मस्जिदें हम जगह-जगह देख रहे हैं, उनके लिए भी धन घर-घर गये बिना ही एकत्