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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रति उससे सामान्यतया जो कुछ उम्मीद रखी जा सकती है, वह सब कुछ किया था। परन्तु इसके लिए मैं सरकारको सरकारके नाते उस अर्थ में धन्यवाद देने में असमर्थ हूँ जिस अर्थ में मैंने कर्नल मैडॉक, कर्नल मरे और मेजर जोन्सको धन्यवाद दिया है। इन सज्जनोंने मेरे साथ जितनी मेहरबानी दिखाई, उन्हें उसकी जरूरत नहीं थी। यदि वे उतना न करते तो भी मैं यही स्वीकार करता कि उनके अपने-अपने क्षेत्रों में उनसे जितनी उम्मीद की जा सकती थी, उन्होंने उतना किया। मेरे प्रति इन सज्जनोंके इस व्यवहारमें हमारा निजी ताल्लुक भी एक कारण था और इसलिए उन्हें धन्यवाद देना मेरा कर्त्तव्य था। दलीलके इस हिस्सेको पूरा करते हुए, यदि सौजन्यकी मर्यादा न टूटती हो तो, मैं कह सकता हूँ कि मेरे और जेलके अफसरोंके—यहाँ तक कि सरकारके दरम्यान भी—जो अच्छा सम्बन्ध बना रहा उसमें एक कैदीकी हैसियतसे अपने कर्त्तव्योंके पूर्ण रूपसे पालनका मेरा हिस्सा कम नहीं है। मैंने बीसियों कठिन मौकोंपर इस सत्यको आजमाकर देखा है कि यदि हम अपना व्यवहार निरन्तर निर्दोष रखें तो उससे तीव्रतम विरोध, द्वेष और सन्देह निरस्त हो जाते हैं। यह पुनरुक्ति मैं इसी सत्यपर जोर देनेके विचारसे ही कर रहा हूँ।

अब कथित हृदय परिवर्तनकी बातको लें। मैं बहुत चाहता हूँ कि मुझे भी यह हृदय-परिवर्तन दिखाई देता। मैं तो उसके लिए तरस रहा हूँ। मैं पाठकोंसे कहना चाहता हूँ कि मैं तो थोड़ा-सा भी वास्तविक हृदय परिवर्तन देखूँ तो अविलम्ब संघर्ष रोक दूँ; परन्तु वह हो बिलकुल सच्चा। हृदय परिवर्तनकी मामूली-सी कसौटी थी हसरत मोहानीको छोड़ देना और श्री हॉर्निमैनपर से प्रतिबन्ध हटा लेना। सरकार वह भी न कर सकी। मैं मानता हूँ कि पहले मेरा इस सरकार में बहुत विश्वास था, परन्तु अब उसमें मेरा उतना ही अविश्वास हो गया है। किन्तु इतनी समझ मुझमें जरूर है कि सच्चे हृदय परिवर्तनको पहचान सकूँ। यह कहा गया है कि यदि सर जॉर्ज लॉयड होते तो वे मेरी बीमारीमें श्रीमान् सर लेस्ली विल्सन जैसा सौजन्य न दिखाते। मैं इसे नहीं मानता। यद्यपि मैं सर जॉर्ज लॉयडको फूटी आँखों नहीं सुहाता था तो भी वे मेरे इलाजका इन्तजाम वैसा ही करते जैसा इन गवर्नर महोदयने किया। कोई आठ मास पूर्व जब मैं यरवदा जेलमें पहली बार कुछ ज्यादा बीमार हुआ था तब असलमें उन्होंने ही कर्नल मैडॉकको मुझे देखनेके लिए भेजा था और उन्हें आदेश था कि जबतक मुझे आराम न हो जाये वे हर हफ्ते मुझे देखें और हर हफ्ते मेरे स्वास्थ्यके समाचार उन्हें भेजें। लोग जितना समझते हैं, अंग्रेज अफसरोंके सम्बन्धमें मेरा खयाल उससे कहीं ऊँचा है। उन्हें अपने कर्त्तव्य पालनका बहुत खयाल रहता है। बात केवल इतनी ही है कि मामूली हाकिमकी प्रामाणिकता नीतिकी सीमासे आगे नहीं बढ़ती। यह उसका कसूर नहीं। वह ऐसी कार्य-प्रणालीका वारिस है जो पुश्तोंसे चली आ रही है और जो सबलके द्वारा निर्बलकी लूटपर कायम रहती है। जो प्रणाली उसका आधार है, वही जब खतरेमें पड़ी दिखाई देती है तो वह लड़खड़ाकर गिर पड़ता है, परन्तु मेरा यह विश्वास है कि इस प्रणालीके अन्तर्गत कोई दूसरा व्यक्ति भी ऐसा ही करेगा। इसलिए यह प्रणाली जितनी जल्दी मिटा दी जाये या जड़-मूलसे बदल दी जाये, उतना ही हम सबके लिए अच्छा है।