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डेक-यात्री

श्री चतुर्वेदीको[१] पूर्व आफ्रिकामें जो मनोरंजक और शिक्षाप्रद अनुभव हुए हैं,[२] मैं उनकी ओर पाठकोंका ध्यान आकर्षित करता हूँ। डेक-यात्री के रूपमें उनके कटु अनुभवोंसे दुःखद स्मृतियाँ जग गई हैं। उन्होंने जो सजीव विवरण दिया है उसमें कोई अत्युक्ति नहीं है। यह अपमानजनक स्थिति इन तीनके द्वारा बदली जा सकती है :

(१) ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेवीगेशन कम्पनी
(२) सरकार
(३) यात्री लोग

ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेवीगेशन कम्पनी इसकी ओर ध्यान नहीं देगी क्योंकि उसका काम तो ज्यादासे ज्यादा मुनाफा कमाना है। सरकारसे हम तबतक कोई आशा नहीं कर सकते जबतक हममें उससे कुछ करवा लेनेकी शक्ति नहीं आ जाती। रहे यात्री, इस स्थितिसे होनेवाला कष्ट उन्हें ही उठाना पड़ता है। दुःखकी बात है कि अधिकांश यात्री निवारण किये जाने योग्य कष्टोंके भी अभ्यस्त हो गये हैं और दूसरे रिश्वतें देकर राहतें हासिल कर लेते हैं। जब कोई भावुक यात्री डेकपर यात्रा करता है, केवल तभी कुछ खलबली मचती है। किन्तु वह डेकके यात्रियोंके प्रति किये जाने वाले इस व्यवहारमें सुधार कराना अपना जीवन-कार्य नहीं बनाता, अतः उसे कोई सफलता नहीं मिलती। जब श्री बनारसीदास जैसे स्वाभिमानी लोग उचित सफाई और जगह के लिए आग्रह करेंगे केवल तभी किसी महत्त्वपूर्ण परिवर्तनकी आशा की जा सकती है, किन्तु उनका यह आग्रह केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि सबके लिए होना चाहिए।

विदेशों में चरखा

श्री चतुर्वेदीने चरखे के सम्बन्धमें जो कुछ कहा है वह अत्यन्त शिक्षाप्रद है। यदि पूर्व आफ्रिका के भारतीय धुनकी, चरखे और करघेको उस देशके वतनियोंमें लोकप्रिय बना सकें तो वे उनकी महत्त्वपूर्ण सेवा करेंगे। चरखेके प्रचारकी बड़ी गुंजाइश है, क्योंकि उसके प्रचारमें लगभग किसी पूँजीकी जरूरत नहीं होती। उसके लिए केवल सहानुभूति, संगठनकी मामूली योग्यता और थोड़ेसे हुनरकी आवश्यकता है जो आसानीसे प्राप्त किया जा सकता है।

पूर्व आफ्रिका में खद्दर

क्या पूर्व आफ्रिका के भारतीयोंको खादी पहननी चाहिए? कहते हैं श्रीमती सरोजिनी नायडूने इसका नकारात्मक उत्तर दिया है। मुझे इसपर विश्वास नहीं होता। उन्होंने कुछ भी कहा हो, पूर्व आफ्रिकाके लोगोंको यथासम्भव खादीका उपयोग

  1. बनारसीदास चतुर्वेदी।
  2. यह यंग इंडिया में १०-४-१९२४ को प्रकाशित हुए थे।