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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करना चाहिए। उनके लिए भारतके लोगोंकी तरह खादी पहननेकी प्रतिज्ञा लेनी आवश्यक नहीं है। श्रीमती नायडूने साफ-सुथरे रहनेपर अवश्य जोर दिया होगा। खद्दरके कपड़े बिलकुल साफ रखे जाने चाहिए और पहने भी सफाईसे जाने चाहिए। प्रायः लोग इन आवश्यक गुणोंकी उपेक्षा करते पाये जाते हैं। यदि खद्दरको ऊँचे वर्गों में लोकप्रिय बनाना है तो खद्दर पहननेवाले लोगोंको साफ-सुथरा रहना होगा। अच्छी धुली खादी खुरदरी और मोटी हो तो यह उसका दोष नहीं बल्कि गुण होता है। मोटी खादी में पसीना सोखनेका अतिरिक्त गुण है, अतः वह स्वास्थ्यकी दृष्टिसे उपयोगी बन जाती है। उसकी ढीली-ढाली बनावटसे उसमें मुलायमियत आ जाती है, जो पहननेवाले को सुखद जान पड़ती है।

जैसा हमने बोया है

श्री एन्ड्रयूजने अस्पृश्यता के सम्बन्धमें जो दुःखजनक बातें कही हैं[१] उनपर हर हिन्दूको विचार करना चाहिए। मुझे श्री एन्ड्रयूज द्वारा बताये जाने के पहले इस बात की जरा भी खबर नहीं थी कि मलाबार के सीरियाई ईसाइयोंमें भी छूतछात मानी जाती है। जब मैंने यह सुना तब मेरा सिर शर्म से झुक गया, क्योंकि मैंने यह अनुभव किया कि उनमें यह बुराई हिन्दुओंके अनुकरणसे आई है। श्री एन्ड्रयूजने जहाज में अपने साथी यात्रियोंसे जब भारतीयोंपर लगी निर्योग्यताओंकी चर्चा की तब उन्होंने श्री एन्ड्रयूजको जो तीखा उत्तर दिया, वह सर्वथा उचित ही था। यद्यपि यह सच है कि दक्षिण आफ्रिका के यूरोपीयोंको अपने देश में हमसे वैसा ही व्यवहार करने की आवश्यकता नहीं है जैसा हम यहाँ अपने लोगोंसे करते हैं, किन्तु जब हमारे दोष हमें आँखों में अँगुली डालकर दिखाये जाते हैं तब हमारे मुंह बन्द हो जाते हैं। हमने जो बोया है, वही हम काट रहे हैं।

मेरा प्रस्ताव

श्रीमती सरोजिनी नायडूके दक्षिण आफ्रिकामें किये गये शानदार कामका वहाँ गहरा असर हुआ है। दक्षिण आफ्रिकासे प्राप्त पत्रोंसे मालूम हुआ है कि वहाँ उनकी उपस्थिति से भारतीय प्रवासियोंमें नया साहस आ गया है। श्री डंकनने एक अनुचित कानूनको उचित ठहरानेका जो व्यर्थ प्रयत्न किया है उससे यह मालूम होता है कि दक्षिण आफ्रिका यूरोपीय भी उनके आश्चर्यजनक कामसे चौकन्ने हुए हैं। श्री डंकनके इस दावेका कि संघ सरकार १९१४के समझौते के अन्तर्गत भारतीय प्रवासियोंको उनके निहित अधिकारोंसे वंचित न करने के लिए बाध्य नहीं है, किन्तु वह वर्गीय क्षेत्र विधेयकसे निस्सन्देह बँधी हुई है, आशय यह होना चाहिए और है भी कि यदि सिद्ध किया जा सके कि समझौते के अनुसार भारतीय प्रवासियोंके निहित अधिकार छीने नहीं जा सकते तो इस विधेयकको कानूनका रूप देनेकी कार्रवाई रोक दी जायेगी। मैं यह सुझाव सामने रखता हूँ कि संघ सरकार द्वारा भारत सरकारको यह वचन दिये जानेपर कि समझौता निष्पक्ष न्यायाधिकरणकी दृष्टिसे सन्तोषजनक रूपसे सिद्ध किया जा

  1. एन्ड्रयूजका "अस्पृश्यता" सम्बन्धी लेख यंग इंडियाके इसी अंकमें छपा था।