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असत्य कथनका आन्दोलन

सके तो वह जाँच पूरी होनेतक इस विधेयकको स्थगित कर देगी, मैं उस हालत में असहयोगी होनेपर भी इस समझौतेको सिद्ध करनेके निमित्त उस न्यायाधिकरणमें जानेके लिए तैयार हूँ। नजीर मौजूद है। जब १८८५ के ट्रान्सवाल अधिनियम संख्या ३ की व्याख्या और लन्दन समझौतेके[१] होते हुए इस कानून के बनाने के औचित्य के सम्बन्धमें विवाद खड़ा हुआ था तब साम्राज्य सरकार और ट्रान्सवाल सरकारने इसे पंचोंके सम्मुख उपस्थित किया था।

पत्र-लेखकोंसे

मेरे सम्मुख प्रकाशन के लिए आये हुए पत्रों और अन्य कागजों का ढेर पड़ा है। यदि 'यंग इंडिया' के वर्तमान आकारको कायम रखना है तो इनको प्रकाशित कर पाना मेरे लिए असम्भव है। इसलिए पत्र-प्रेषक यहाँ अपने लेखोंको छपा न देखें तो वे कृपया मुझे क्षमा करेंगे। बात यह है कि 'यंग इंडिया', जैसा कि एक आदरणीय सज्जनने मुझसे कहा, कोई समाचार-पत्र नहीं, विचार-पत्र है। फिर इसका उपयोग बहुत कुछ मेरे विचारोंको और वह भी मेरे ही ढंगसे, प्रचार करनके लिए किया जा रहा है। इसका क्षेत्र मर्यादित है इसलिए यदि पत्र लेखक मुझे ऐसे लेख ही न भेजें जिनमें कोई विशेष बात नहीं है और जो 'यंग इंडिया' के उद्देश्यसे सम्बन्धित नहीं हैं तो अच्छा होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-४-१९२१
 

३१६. असत्य कथनका आन्दोलन

ऐसा प्रतीत होता है कि इस समय हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच भेदभावको बढ़ाने का प्रयत्न जान-बूझकर किया जा रहा है। कुछ अखबार, जिनमें हिन्दुओं के अखबार भी हैं और मुसलमानोंके भी, उत्तेजना फैलाने के प्रयत्नमें कोई कसर नहीं रख रहे हैं और दुर्भाग्यसे उनको अत्युक्ति और असत्य कथनका आश्रय लेनेमें भी कोई झिझक नहीं होती। जो अखबार जान-बूझकर ऐसी हरकतें नहीं करते वे किसी दूसरे अखबार में सनसनी फैलानेवाली किसी भी चीजको देखते हैं तो बिना उसकी जाँच किये उसे निधड़क छाप देते हैं।

एक ऐसी ही बात मौलाना मुहम्मद अलीके सम्बन्ध में कही गई है। कहते हैं उन्होंने कहा कि एक व्यभिचारी मुसलमान भी गांधीसे ज्यादा अच्छा है। मौलाना मुहम्मद अलीके सम्बन्धमें ऐसी किसी बातपर विश्वास करनेके लिए तैयार लोगोंका मिल सकना यह बताता है कि हिन्दुओं और मुसलमानोंमें कितना मनमुटाव है। पाठक एक दूसरे स्तम्भमें मौलानाके लिखे हुए दो पत्रोंका अनुवाद देखेंगे। इनमें से एक पत्र

  1. इसपर १८८४ में हस्ताक्षर हुए थे, देखिए खण्ड १, पृ४ ३७५।