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असत्य कथनका आन्दोलन

मित्रोंका भला चाहता हूँ तो जबतक मैं इसको सबसे अच्छा धर्म मानता हूँ तबतक मैं यही कामना कर सकता हूँ कि उनका भी इस धर्म में विश्वास हो। मैं हिन्दू धर्मके भीतर इसलिए हूँ कि मैंने अपने इस धर्मकी जो कसौटी रखी है उसपर हिन्दुत्व खरा उतरता है।

स्वामीजीने हृदयसे और पूरे तौरपर मौलानाके पत्रको स्वीकार करते हुए कहा है कि उनके अपने धर्म में व्यवहार और विश्वास के बीच कोई अन्तर नहीं है, जब कि उनकी समझ के अनुसार मौलानाके धर्ममें ऐसा अन्तर है। मौलानाने जो दूसरा पत्र लिखा है उसमें यह मुद्दा साफ कर दिया गया है और यह कहकर इस विवादको समाप्त किया है कि उनके धर्ममें भी व्यवहार विश्वाससे भिन्न नहीं है। उन्होंने यह भी कहा है कि मैंने अपने पत्र में केवल संसारके धर्मोकी तुलना की हैं और अपना यह मत प्रकट किया है कि मेरा धर्म सबसे अच्छा धर्म है। क्या मुसलमान रहते हुए में इससे भिन्न आचरण कर सकता हूँ? यदि मैं ऐसा करूँ तो एक सच्चे मनुष्यके रूप में क्या में उस धर्मको, जिसे मैं इस्लामसे अच्छा समझता हूँ, माननेके लिए बाध्य नहीं हूँ?

मुहम्मद अली इस समय पारिवारिक दुःखसे पीड़ित हैं और उनके बड़े भाई बीमार हैं। इस अवस्था में भी वे हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच की खाईको पाटने के लिए यथाशक्ति प्रयत्न कर रहे हैं। मुझे आशा है कि इस स्थितिमें प्रत्येक सच्चे हिन्दूको सहानुभूति उनके साथ होगी। इसमें सन्देह नहीं है कि जो हिन्दू एकताका प्रयत्न कर रहे हैं उनके मन में भी इतनी धर्मान्धता तो है ही कि वे अपने मुसलमान सहयोगियोंको अपनेसे बेहतर नहीं मानते।

दूसरी घटना तिब्बिया कालेज में हुई बताते हैं। मैंने अपने पुत्रसे यह कहा था कि वह डा॰ अन्सारीको एक पत्र लिखे ताकि वे मुझे यह सूचित कर दें कि वास्तविक घटना क्या थी। मैं उनका उत्तर यहाँ लगभग पूराका-पूरा छाप रहा हूँ। इसमें से वे छः शब्द छोड़ दिये गये हैं जिनमें संयम रखनेके और समाचारको छापनेसे पहले उसकी सचाई जाँच लेने के नियमको भंग करनेवाले अखबारका नाम दिया गया है। चूँकि मेरा उद्देश्य किसी अखबार विशेषकी आलोचना करना नहीं है, बल्कि अखबारों में उग्र रूपसे फैली हुई इस बीमारी का इलाज ढूंढ़ना है, इसलिए मैंने यह नाम छोड़ दिया है। डा॰ अन्सारी लिखते हैं :

तिब्बिया कॉलेजकी घटना बहुत ही मामूली-सी है। जिस दिन कालेजमें महात्माजी का जन्म-दिवस मनाया जा रहा था उस दिन एक वक्ताने महात्माजीकी तुलना ईसा मसीहसे की थी। इसपर एक मुसलमान छात्रने आपत्ति की और कहा कि किसी भी जीवित व्यक्तिकी, चाहे वह सभी बातों में कितना ही बड़ा क्यों न हो, पैगम्बरोंसे तुलना नहीं की जानी चाहिए। कुछ छात्रोंने मुसलमान छात्रके इस कथनका विरोध किया। इसपर मुसलमान छात्रने अपना आशय समझानेका प्रयत्न किया और उसके कथनसे जो भ्रम उत्पन्न हुआ था उसपर खेद प्रकट किया। सारी बात इतनी ही है और स्पष्ट ही यह कहना तो सरासर गलत