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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
है कि इसमें कुछ कार्यकर्त्ताओंका हाथ था अथवा शान्ति भंग होनेकी कोई भी आशंका थी।
जिन पत्रोंका आपने उल्लेख किया है वे दलबन्दीके बड़े भारी हामी हैं। उनकी विशेषता हो यह है कि वे दोनों जातियोंको लड़ानेवाली खबरें इकट्ठी करते हैं और छोटी-छोटी घटनाओंको बहुत ही बढ़ा-चढ़ाकर छापते हैं। यदि केवल इन पत्रोंका ही दोष होता तो इतनी दुःखकी बात न होती, क्योंकि ये पत्र न तो महत्वपूर्ण हैं और न प्रसिद्ध। किन्तु दुर्भाग्यकी बात यह है कि वैरकी यह भावना उत्तर भारत के हिन्दुओं और मुसलमानों दोनोंके देशो भाषाओं में निकलनेवाले लगभग समस्त पत्रोंमें व्याप्त है।
ये घटनाएँ जिन्हें छापनेमें इन पत्रोंने ऐसी दुःखजनक और ओछेपन से भरी हुई कट्टरताका परिचय दिया है, विरल हों सो बात नहीं है। निपट धर्मान्धता और हर प्रकारसे दूसरी कौम को नीचा दिखानेकी यह कुत्सित इच्छा आज उत्तर भारतके देशी भाषाओंके पत्रोंका अनिवार्य अंग बन गई है।

घटना जिस तरह बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई है, पाठक उससे परिचित हैं। जिस मुसलमान छात्रने उक्त तुलनापर आपत्ति की उसका कार्य आखिर उचित ही था। किसी मनुष्यका सम्मान करने के लिए उसकी तुलना सम्मान्य पैगम्बरोंसे करना तो दूर, किसी अन्य सम्मानित मनुष्यसे भी करना आवश्यक नहीं है। डा॰ अन्सारीने उत्तर भारत के देशी भाषा के पत्रोंके सम्बन्ध में जो जानकारी दी है उससे भय और चिन्ता उत्पन्न होने की सम्भावना है। आशा है जो पत्र सनसनी फैलाकर अपनी रोटी कमाते हैं वे पैसे का खयाल पीछे और देश हित और सत्यका खयाल पहले करेंगे। सुनने में आया है कि मुस्लिम पत्रोंके सम्पादक हिन्दुओं और उनके धर्मको गालियाँ देना तभी बन्द करेंगे जब हिन्दू पत्रोंके सम्पादक इस्लाम और मुसलमानोंको गालियाँ देना बन्द कर देंगे और हिन्दू पत्रों के सम्पादक चाहते हैं कि इस मामले में पहल मुस्लिम पत्रोंके सम्पादक करें। मेरा सुझाव है कि दोनों ही अपने रवैये में बिना दूसरेका रास्ता देखे यह सुधार कर लें।

मैं यह कहना नहीं चाहता कि सत्यको छिपाया जाये। इस तरहका गलत सौजन्य पहले दिखाया गया है। आवश्यक यह है कि सत्यको निर्भय होकर प्रचारित किया जाये किन्तु अत्युक्ति और मिथ्या आरोपोंसे ईमानदारी के साथ बचते रहें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-४-१९२४