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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ऊपरका अंश एक अज्ञात अमेरिकी मित्र द्वारा मेरे पास भेज गय १४ फरवरी, १९२४ के 'यूनिटी' में प्रकाशित एक लेखसे लिया गया है।

लेख श्री आर्थर एल॰ वैदरलीने पत्रके रूपमें श्री होम्सको भेजा था। पत्र में यह सिद्ध करनेका प्रयास किया गया है कि यदि आदर्शवादी व्यावहारिक बना रहना चाहता है तो उसे अपने आदर्शको प्रस्तुत परिस्थितियोंके तलतक नीचे उतार लाना पड़ता है। लेखकने अपने तर्कको पुष्ट करनेके लिए पत्रमें बहुतसे उदाहरण दिये हैं। चूँकि फिलहाल उनके मुख्य तर्कसे मुझे सरोकार नहीं है, अतः मैं समझता हूँ कि उनके पत्रसे केवल एक अंश उद्धृत करके मैं उनके प्रति अन्याय नहीं कर रहा हूँ। मेरे विचारमें भारतीय असहयोगके विषयमें श्री वैदरलीका दृष्टिकोण पाठकोंको मोटे तौरपर रोचक अवश्य जान पड़ेगा।[१]

श्री वेदरलीने यह बात एक व्यापक सत्यके रूपमें प्रस्थापित की है कि असहयोग हिंसाका तरीका है"। यदि वे क्षणभर भी विचार करते तो इस प्रस्थापनाकी असत्यता दृष्टिगोचर हो जाती। मैं जब शराबकी दूकानपर शराब बेचनेसे इनकार करता हूँ अथवा खूनीको उसकी योजनाओंमें सहायता देनेसे इनकार करता हूँ, तब मैं असहयोग करता हूँ। मेरी रायमें मेरा यह असहयोग हिंसाका तरीका नहीं है, इतना ही नहीं बल्कि मैंने प्रेमके कारण इनकार किया हो तो मेरा असहयोग प्रेमका कार्य हो सकता है। तथ्य यह है कि सभी प्रकारका असहयोग हिंसात्मक नहीं होता और अहिंसात्मक असहयोग तो कभी हिंसात्मक कार्य हो ही नहीं सकता—सम्भव है हर हालत में वह प्रेम-प्रेरित कार्य न हो। क्योंकि प्रेम एक ऐसा सक्रिय गुण है जो सदा क्रियासे अनुमित नहीं हो पाता। एक शल्य-चिकित्सक अत्यन्त सफल ऑपरेशन कर सकता है, तथापि हो सकता है कि रोगीके लिए उसके मनमें कोई प्रेम न हो।

श्री वैदरलीने जो उदाहरण दिया है वह विवेचन करनेपर अत्यन्त अनुचित एवं अपूर्ण ठहरता है। यदि न्यूयार्कमें दूधकी गाड़ियाँ हाँकनेवालों को नगरपालिकासे उसके अपराधपूर्ण कुप्रबन्धके कारण शिकायत हो और यदि वे उसे झुकानेके लिए न्यूयार्कके बच्चोंको दूध पहुँचाना बन्द करनेका निश्चय करें तो वे मानव-जातिके प्रति अपराध करेंगे। किन्तु मान लीजिए कि दूधकी गाड़ियोंको हाँकनेवालों को उनके मालिक काफी मजदूरी नहीं देते जिसके फलस्वरूप वे भूखों मर रहे हैं, एवं उन्होंने अधिक मजदूरी करने के अन्य सब सुलभ एवं उचित उपायोंका प्रयोग करके देख लिया है, तो उनका दूधकी गाड़ियाँ हाँकनेसे इनकार करना न्यायसंगत होगा—चाहे फिर उनके इस कार्यके फलस्वरूप न्यूयार्कके बच्चोंकी मृत्यु ही क्यों न हो जाये। उनका इनकार प्रेमका कार्य भले ही न हो किन्तु वह निश्चय ही हिंसाका कार्य नहीं होगा। वे कोई परहित निरत प्राणी नहीं हैं। वे अपनी जीविकाके लिए दूधकी गाड़ियाँ हाँक रहे हैं। कर्मचारियोंके रूपमें यह उनके कर्त्तव्यका अंश नहीं है कि वे चाहे जिस

  1. गांधीजीने बादमें इस वाक्यमें यों सुधार किया है : "मेरा हेतु यह बताना है कि श्री वैदरलीका दृष्टिकोण एकदम गलत है; किन्तु गलत होते हुए भी वह मोटे तौरपर रोचक अवश्य जान पड़ेगा। देखिए "पत्र : महादेव देसाईको", १०-४-१९२४ के पश्चात्।