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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है; किन्तु वह प्रेमका कार्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह अशक्त लोगों द्वारा आत्मरक्षा के लिए अपनाया गया है।

श्री वेदरलीने स्वराज्य दलके अड़ंगे डालनेके कार्यक्रमका जो उल्लेख किया है उसका विवेचन पिछले सप्ताह बताये गये कारणोंसे फिलहाल नहीं किया जा सकता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-४-१९२४
 

३१९. सरोजिनीकी विमोहिनी शक्ति

'यंग इंडिया' के लिए अन्तिम पत्र भेजनेसे कुछ ही समय पूर्व मुझे अपने पुत्र मणिलाल गांधीका, जो नेटालमें 'इंडियन ओपिनियन' का काम सँभालता है, एक पत्र मिला है। इसमें श्रीमती नायडूकी यात्राका सुन्दर वर्णन दिया गया है। में जानता हूँ कि पाठक इसका जल्दीसे-जल्दी प्रकाशन पसन्द करेंगे। पत्र १५ मार्च, १९२४का है, जिसका अनुवाद में नीचे दे रहा हूँ :

यह पत्र जल्दी में लिखा गया है। दो घंटे बाद ही डाक निकल जायेगी। पिछले कोई २० दिनोंसे श्रीमती सरोजिनी नायडू यहाँ आई हुई हैं। उन्होंने इस देशके निवासियोंपर, खास करके गोरे लोगोंपर, बड़ा ही अच्छा प्रभाव डाला है। जोहानिसबर्ग में शुरू-शुरूमें तो लोगोंने उनका तीव्र विरोध किया था; परन्तु श्रीमती नायडूकी वक्त्ता सुननेके बाद वह जाता रहा और वे लोग जो कुछ शरारत या उपद्रव करना चाहते थे, शरमाकर रह गये हैं। ट्रान्सवालकी अपनी यात्राके अन्तमें वे जोहानिसबर्ग आईं। उस समय गोरे हजारों की तादाद में सभाओंमें आते थे। में वहाँ नहीं गया था। जब वे इस तरफ आनेको हुई तब में फोक्सरस्ट उन्हें लेने गया था। हर स्टेशनपर सैकड़ों लोग क्या गोरे और क्या हिन्दुस्तानी उनसे मिलने आते थे। उनकी गाड़ी फूलोंसे लद जाती थी। मैरित्सबर्ग में वे दो दिन ठहरीं। वहाँ एशियाई लोगोंके खिलाफ कटुता बहुत व्याप्त है और प्रतिगामी लोगोंका पूरा जोर है। श्रीमती नायडूके आनेके पहलेसे ही वे शोर कर रहे थे कि हिन्दुस्तानियोंको टाउनहॉल बिलकुल नहीं मिलना चाहिए और यदि मिलेगा तो भारी झगड़ा हो जायेगा। किन्तु आखिरी दिन मैरित्सबर्गके 'टाइम्स' ने अग्रलेख लिखकर लोगोंको झगड़ा- फसाद न करनेके लिए समझाया; जिससे स्थिति संभल गई। सभाके वक्त टाउनहॉलमें लोग खचाखच भरे हुए थे और गॅलरी गोरोंसे भर गई थी। मेयरने सभापति पद ग्रहण करना मंजूर नहीं किया। तब एक दूसरा गोरा सभापति बनाया गया। उसके बोलनेके लिए खड़े होते ही गॅलरीमें इतना गुल-गपाड़ा मचा कि उसे बैठ जाना पड़ा। फिर श्री भगतने उन्हें समझानेका प्रयत्न