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सरोजिनीकी विमोहिनी शक्ति
किया किन्तु उन्हें भी बैठ जाना पड़ा। अन्त में श्रीमती नायडू खड़ी हुई। वे दो-तीन वाक्य ही बोली थीं कि इतनेमें फसादी लोगोंके मुखिया चलते बने और बीस मिनट बोलनेके बाद बाकी फसादी भी उठ गये। व्याख्यान खत्म होनेके बाद कुछ अपरिचित यूरोपीय बड़ी उत्सुकतासे श्रीमती नायडूसे हाथ मिलानेके लिए आये।
दूसरे दिन भारतीयों और गोरोंके दलके-दल श्रीमती नायडूके निवासस्थानपर उन्हें देखनेके लिए खड़े दिखाई दिये। लोग उनके निवासस्थानके चौकमें नहीं समा पा रहे थे। गोरी तथा गैर-गोरी स्त्रियाँ तो श्रीमती नायडूकी हिम्मत देखकर वंग थीं। पादरी भी आये थे और उनसे जान-पहचान करना चाहते थे। श्रीमती नायडूसे नेटालके बिशपकी भेंटके बाद तो समस्त वातावरण ही बदल गया।
श्रीमती नायडूका शायद सबसे अधिक स्वागत-सत्कार डर्बनमें हुआ। मैरिस बतक उन्हें लेनेके लिए विशेष रेलगाड़ी भेजी गई थी। डर्बन स्टेशनपर तो लोगोंकी भीड़का कोई शुमार ही नहीं था और बाहरके रास्ते भी दर्शकों से ठसाठस भरे हुए थे। लोग उनकी गाड़ी खीं चकर अल्बर्ट पार्क में ले गये। वहाँ कमसे कम पाँच हजार नर-नारी और इतने ही विद्यार्थी पहलेसे एकत्र थे। स्त्रियोंको सभा ऐसी हुई जैसी पहले कभी नहीं हुई थी। टाउनहॉलमें उनके दो व्याख्यान हुए। दोनों बार हॉल खचाखच भरा था और पहले दिन तो कमसे कम तीन-चार हजार लोगोंको वापस लौट जाना पड़ा था। गोरी महिलाओंने उनके स्वागतके लिए खास तौरपर सभाको आयोजना की थी। इसके सिवा वे जुलूलैंड तक सफर कर आई हैं। अभी टोंगाट और फीनिक्स बाकी हैं। यहाँ तीन दिन रहकर वे इस समय केप टाउन चली गई हैं। वहाँ वे वर्ग-क्षेत्र विधेयकको चर्चाके वक्त उपस्थित रहना चाहती हैं। वे उसके बाद केपके दूसरे शहरोंकी यात्रा करेंगी। फिर कुछ समयके लिए जोहानिसबर्ग जायेंगी और तब यहाँ एक हफ्ता रहेंगी। वे यहींसे अप्रैलमें पहले जहाज से मातृभूमिके लिए रवाना होंगी।
श्रीमती नायडूकी शक्ति अद्भुत है। उन्हें कभी-कभी यात्रा और व्याख्यानोंके कारण बुखार आ जाता है और सिर दर्द भी हो जाता है; किन्तु फिर भी इससे उनके व्यस्त कार्यक्रम में बाधा नहीं आती ।
हाकिम लोग बड़ी अच्छी तरह पेश आते हैं। उनके लिए गाड़ियोंमें स्पेशल डिब्बेका इन्तजाम किया जाता है और राहमें भी रेल अधिकारी शिष्टताका बरताव करते हैं। श्रीमती नायडू खुद ही आपको लिखना चाहती थीं, पर कामकी अधिकता से न लिख सकीं। उन्होंने मुझे पत्र लिखनेके लिए कहा था।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-४-१९२४