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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इस धनका उपयोग फिलहाल तो मुख्यतः तीन कामों में किया जायेगा। दाता इच्छानुसार अपनी दी हुई रकम इन तीन में से किसी भी कामके लिए अंकित कर सकता है; खादी अथवा चरखेका प्रचार, शिक्षा और अन्त्यजोंकी सेवा। इस साल शिक्षाका काम अच्छी बुनियादपर चलाना है। सरकारी विद्यालयोंमें एक भी लड़केका रहना मैं शर्मकी बात मानता हूँ। हम अपने शिक्षालयोंकी हालत अच्छी बनाकर प्रत्येक बालक-बालिकाको इस ओर खींच सकते हैं। यदि एक भी बालक ऐसा निकले जो पाठशाला न जाता हो तो इसे भी मैं शर्मकी बात समझूँगा।

ये दोनों विभाग ऐसे हैं कि यदि अच्छी तरह चलाये गये तो कर देनेवालेको तथा समस्त जनताको दस गुना बदला मिल जायेगा। पिछली साल गुजरातने जो पन्द्रह लाख दिये थे उनका उपयोग मुख्यतः इन्हीं दो कार्योंके लिए हुआ है। इस साल अन्त्यज-सेवामें अधिक धन लगाना पड़ेगा। सो यदि गुजरातियोंको कांग्रेसका कार्य सन्तोषजनक मालूम हुआ हो तो वे अधिक ही धन देंगे, कम नहीं और उसे वसूल करनेमें कम मेहनत करायेंगे। जनता कांग्रेसका कितना आदर करती है, उसकी यह पहली कसौटी है। मैं आशा करता हूँ कि सब लोग एक-दूसरेकी राह देखे बिना अपने-आप इस करको अदा कर देंगे।

सब लोग यह बात ध्यान में रखें कि प्रान्तीय कमेटीका हिसाब-किताब बिलकुल ठीक है। स्थानीय और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा नियुक्त दो लेखा परीक्षकोंने उसकी जाँच भी की है। वह अपना हिसाब समय-समयपर प्रकाशित भी करती रही है।

अहमदाबादकी नगरपालिका

नगरपालिका जनताके हाथमें है, सत्ता [सरकार द्वारा नियुक्त] समितिके हाथमें। जिस समय सरकारने समिति नियुक्त कर दी, उसी समय नगरपालिका राष्ट्रीय हो गई, क्योंकि समितिकी नियुक्ति के साथ ही सरकारसे जनता के चुने प्रतिनिधियों के सम्बन्ध टूट गये।

इस घटनाको दो दृष्टियोंसे देखा जा सकता है। सरकारने नगरपालिका बन्द कर दी, इसे यदि हम अपने लिए एक अप्रत्याशित अनिष्ट मानें तब तो ऐसा नहीं कहा जायेगा कि नगरपालिका राष्ट्रीय हो गई, बल्कि यही कहा जायेगा कि जनतासे सत्ता छीन ली गई है। किन्तु यदि हम ऐसा समझें—और यही समझना ठीक भी है कि हमारा तो लक्ष्य ही यही था कि सरकार या तो नगरपालिकाकी सत्ता स्वीकार करे या फिर उसे बन्द ही कर दे तो माना जायेगा कि नगरपालिका स्वतन्त्र हो गई है और इसलिए राष्ट्रीय भी हो गई।

और यह सचमुच राष्ट्रीय हुई है या नहीं, इसका निर्णय तो नागरिकोंपर निर्भर करता है। यदि नागरिक लोग प्रतिनिधियोंमें विश्वास रखें, अपने नगरका काम उन्हींसे करायें तो इसका मतलब होगा कि नगरपालिका राष्ट्रीय हो गई है। किन्तु जिन बातों में वे अपनी स्वतन्त्रताका प्रयोग आसानीसे कर सकते हैं, उन बातों में भी यदि उन्होंने समितिकी सत्ता स्वीकार कर ली तब तो यही माना जायेगा कि नगरपालिका सरकार के हाथों में चली गई।