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कौंसिल प्रवेश के सम्बन्धमें विचार

रचनात्मक कार्यको मजबूत करनेका प्रयत्न करूँगा। इसलिए मैं ऐसे प्रस्ताव रखूँगा जिनमें केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारोंसे (१) अपनी कपड़ेकी जरूरत पूरी करने के लिए हाथकते सूतकी और हाथबुनी खादी खरीदनेका, (२) विदेशी कपड़ेको यहाँ आनेसे रोकने के लिए भारी कर लगानेका और (३) शराब और नशीली चीजोंके भण्डारोंको बन्द करनेका और फौजके खर्चमें उसी अनुपात में कमी करनेका आग्रह होगा। यदि सरकार व्यवस्थापिका सभाओं में पास किये इन प्रस्तावोंको कार्यान्वित करनेसे इनकार करेगी तो मैं उससे इनको भंग करने और विशेष मुद्दोंपर मतदाताओंकी राय लेनेके लिए कहूँगा। यदि सरकार इनको भंग नहीं करेगी तो मैं त्यागपत्र दे दूँगा और देशको सत्याग्रहके लिए तैयार करूँगा। जब वह अवस्था आयेगी तब स्वराज्यवादी यह देखेंगे कि मैं उनके साथ मिलकर और उनकी अधीनतामें काम करने के लिए तैयार हूँ। देश सत्याग्रहके लिए तैयार है या नहीं यह जाननेकी मेरे विचारसे वही कसौटी होगी, जो पहले थी।

इस प्रायोगिक कालमें मैं अपरिवर्तनवादियोंको यह सलाह दूँगा कि स्वराज्यवादी क्या कर रहे हैं अथवा क्या कह रहे हैं, इसका कोई खयाल किये बिना वे अपनी आस्थाकी सचाई सिद्ध करें और पूरी शक्ति और पूरी तन्मयतासे अपने कार्यक्रमोंपर अमल करें। चुपचाप, सचाईसे और दिखावा किये बिना काम करनेमें विश्वास रखनेवाले बहुसंख्यक कार्यकर्त्ता खद्दरके प्रचार और राष्ट्रीय पाठशालाओंके संचालनमें ही खप सकते हैं। कार्यकर्त्ताओंको हिन्दू और मुस्लिम समस्यामें भी अपनी सारी शक्ति और आस्था लगा देनी पड़ेगी। जैसा कि वाइकोम सत्याग्रहसे प्रकट हो रहा है, हिन्दुओंके सम्मुख अस्पृश्यता निवारण एक बहुत बड़ी समस्याके रूपमें उपस्थित है। कौंसिलोंके बाहर इस प्रकार के समस्त कार्योंमें अपरिवर्तनवादी और परिवर्तनवादी दोनों मिलकर काम कर सकते हैं।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८७१८) की फोटो-नकलसे।