पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/४८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३२६. कौंसिल-प्रवेशसे सम्बन्धित वक्तव्यका पहला मसविदा[१]

११ अप्रैल, १९२४

असेम्बली और कौंसिलोंमें कांग्रेसजन प्रवेश करें या न करें इस बहुचर्चित प्रश्न पर स्वराज्यवादी मित्रोंसे बातचीत करनेके बाद मुझे खेदके साथ यह कहना पड़ता है कि स्वराज्यवादी मित्रोंसे मेरे विचार बिलकुल नहीं मिले। मैं पाठकोंको विश्वास दिलाता हूँ कि स्वराज्यवादियोंकी स्थितिको समझने की दिशामें मेरी ओरसे इच्छा अथवा प्रयत्नकी कोई कमी नहीं रही। यदि मैं स्वराज्यवादियोंके कार्यक्रमसे सहमत हो पाता तो मेरा कार्य बहुत सरल हो जाता। इन अत्यन्त प्रतिष्ठित और परखे हुए नेताओंका विरोध करना, यहाँतक कि मनमें विरोधकी भावना लाना मेरे लिए सुखद नहीं हो सकता। इनमें से कुछ नेताओंने तो देशके लिए भारी त्याग किया है और मातृभूमिको स्वतन्त्रताके प्रति उनका प्रेम किसी भी दूसरे मनुष्यसे कदापि कम नहीं है। किन्तु अपने इस प्रयत्न और अपनी इस इच्छा के बावजूद उनके तर्कोंसे मेरा पूरा समाधान नहीं हो सकता। उनसे मेरा मतभेद केवल ब्योरे के बारेमें हो, ऐसी बात भी नहीं है। दुर्भाग्यसे यह मतभेद सिद्धान्त के मूल आधारतक जा पहुँचा है। यदि केवल ब्योरेके बारेमें ही मतभेद होता तो में अपने विचारको चाहे वह कितना ही दृढ़ क्यों न होता, त्याग देता और समझौते की खातिर स्वराज्यवादी दलमें सम्मिलित हो जाता तथा अपरिवर्तनवादियोंको स्वराज्यवादी दलसे हार्दिक सहयोग करनेकी और उसके कार्यक्रमको राष्ट्रीय कार्यक्रम बना लेनेकी सलाह देता। किन्तु चूँकि यह मतभेद, जैसा मैं कह चुका हूँ, बुनियादी है इसलिए ऐसा रुख अपनाना असम्भव हुआ। मेरा विश्वास है कि व्यवस्थापिका सभाओं में प्रवेश करनेसे स्वराज्यकी दिशामें हमारी प्रगति मन्द पड़ गई है और मेरा यह विश्वास, विचार और अनुभवके बलपर, दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक दृढ़ होता जा रहा है। अपने उक्त विश्वासके कारण नीचे दे रहा हूँ। मेरी विनम्र सम्मतिमें :

  1. स्पष्ट है कि यह टाइप किया हुआ कागज गांधीजीके "कौंसिल प्रवेशके सम्बन्धमें विचार" का विशद रूप है। उन्होंने इसका शीर्षक "फस्टें ड्राफ्ट ऑफ स्टेटमेंट ऑन दि कौंसिल्स क्वस्वन" दिया था और उसपर लिखा हुआ है : "बिलकुल कच्चा, अधूरा, असंशोधित, गोपनीय, प्रकाशनके लिए नहीं।" गांधीजीने यह मसविदा १३ अप्रैलको पं॰ मोतीलाल नेहरूको भेजा था; देखिए पृष्ठ ४६५। मोतीलालजीने उत्तर में गांधीजीको एक विस्तृत टिप्पणी लिखकर भेजी थी; देखिए परिशिष्ट १४। इसमें उन्होंने गांधीजीके मसविदेकी वार्ताका सूक्ष्म और स्पष्ट आलोचनात्मक विश्लेषण किया था और अपने सुझाव दिये थे। गांधीजीने तब अपना अन्तिम मसविदा तैयार किया जिसे उन्होंने कुछ छोटे-मोटे शाब्दिक परिवर्तन करके २२ मईको वक्तव्यके रूपमें अखबारोंको भेजा था। देखिए खण्ड २४।