पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/४८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४५
कौंसिल प्रवेशसे सम्बन्धित वक्तव्यका पहला मसविदा


(क) व्यवस्थापिका सभाओंमें प्रवेश करनेका अर्थ वर्तमान शासन-प्रणाली में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूपसे भाग लेने जैसा है; क्योंकि व्यवस्थापिका सभाएँ वर्तमान प्रणालीको कायम रखनेके लिए बनाये गये तन्त्रकी एक मुख्य अंग हैं।

(ख) अवरोधके कार्यक्रम में हिंसा की तीव्र गन्ध आती है और उससे सविनय अवज्ञाके योग्य भूमि तैयार करनेके लिए आवश्यक शान्त वातावरण उत्पन्न नहीं हो सकता। कांग्रेसने सविनय अवज्ञाको ही ऐसा तरीका माना है जिसके लिए जनताको तैयार किया जा सकता है और जो सशस्त्र विद्रोहका प्रभावकारी विकल्प बन सकता है।

(ग) इससे रचनात्मक कार्य अर्थात् चरखेके प्रचार, विभिन्न जातियोंकी एकता, अस्पृश्यता निवारण, पंचायत-प्रथाके विकास, राष्ट्रीय पाठशालाओंके संचालन और इस कार्यक्रमको चलाने के लिए आवश्यक धन-संग्रहके कार्यको आगे बढ़ाने में बाधा उत्पन्न हुई है।

(घ) यदि यह मान भी लें कि कौंसिल-प्रवेश वांछनीय है, तो भी वह अभी असामयिक है। सभी लोग इस बातको मानेंगे कि व्यवस्थापिका सभाओंमें स्वराज्य दलने जिस अनुशासनका परिचय दिया है उसका कारण है कांग्रेस द्वारा १९२० से अबतक लगन और व्यवस्थित ढंग से किया हुआ कार्य; किन्तु निराशाओंके बावजूद अनुशासन अथवा व्यवस्था बनाये रखना कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओंके स्वभावका अंग नहीं बन पाया है। पिछले चार सालके अनुभवसे प्रकट होता है कि यदि कष्ट सहनका यह सिलसिला लम्बे असेंतक चला तो सम्भवतः अनुशासन और लगनसे काम करनेकी आदत जाती रहेगी। वर्तमान व्यवस्थापिका सभाओंमें ऐसा वातावरण नहीं होता जिसमें सत्य और अहिंसाकी प्रवृत्ति बन सके। इसके विपरीत उस वातावरणमें नित्य ऐसे मौके आते रहते हैं जब आदमी इन गुणोंको त्याग देनेके लिए बरबस ही ललचा जाता है।

(ङ) कौंसिल प्रवेशका अर्थ है खिलाफत और पंजाबके प्रश्नोंको छोड़ देना।

"मैं उपर्युक्त आपत्तियों के समर्थनमें विस्तृत तर्क देना नहीं चाहता। मैं केवल इस बुनियादी आपत्ति के सम्बन्धमें कुछ शब्द कहना चाहता हूँ कि कौंसिल प्रवेशका अर्थ करीब-करीब हिंसा में भाग लेना है। कहा गया है कि मैं अहिंसाका जो आत्यन्तिक अर्थ लेता हूँ वैसा आत्यन्तिक अर्थ कोई दूसरा नहीं लेता और ज्यादातर कांग्रेसजन अहिंसाकी परिभाषा विरोधीको शारीरिक क्षति न पहुँचाने तक ही करते हैं। मैं इस कथन की सत्यतापर सन्देह प्रकट करना चाहता हूँ। यदि यह सच भी हो तो भी यह तर्क मेरे बताये हुए बुनियादी मतभेदके विरुद्ध नहीं है; बल्कि कांग्रेसके सिद्धान्तोंको बदलने और कांग्रेसके प्रस्तावों में जहाँ कहीं भी 'अहिंसा' शब्द विशेषणके रूप में आता है वहाँसे उसे हटाने के पक्ष में जाता है, क्योंकि यह बात हर व्यक्तिको स्पष्टतः समझ लेनी चाहिए कि यदि कोई असहयोगी अपने विरोधीको शारीरिक क्षति पहुँचानेसे बचता हुआ भी अपनी वाणीसे उसे चोट पहुँचाये और मनसे उसका बुरा चाहे तो यह संघर्ष अवश्य ही विफल हो जायेगा। ऐसी अहिंसा केवल भ्रामक आवरण है और उससे सविनय अवज्ञाके लिए उपयुक्त वातावरण कदापि उत्पन्न नहीं हो सकता; क्योंकि इस अवस्थामें सदा सरकारी अधिकारियों और सहयोगियोंके विरुद्ध किये गये प्रत्येक हिंसात्मक प्रदर्शनको हमारा मौन समर्थन प्राप्त होता रहेगा।