पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/४९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५३
टिप्पणियाँ


इस टिप्पणी लिखते समय ही एक समाचार मेरे पढ़ने में आया है। कलकत्तेमें दो व्यक्ति बैठे हुए चाय पी रहे थे। उनमें से एकने मेरी प्रशंसा की और दूसरेने आलोचना की। मेरे प्रशंसकको आलोचना अच्छी नहीं लगी और वह उसपर टूट पड़ा। बादमें दोनों वीर एक-दूसरेसे भिड़ गये और अन्तमें पुलिसने दोनोंको इस हिंसक गुत्थमगुत्थासे अलग किया।

मैं इनमें से किसे जयमाला पहनाऊँ? अपने प्रशंसकको या आलोचकको अथवा दोनों में से किसीको भी नहीं। उत्तर देना आसान है। प्रशंसकने आलोचकपर प्रहार कर मेरी वास्तविक निन्दा की है। उसने मेरे ऊपर ही प्रहार किया है। आलोचक यदि मुझे आकर दो चाबुक मार जाता तो अपने अहिंसा-धर्म के अनुसार मैं उसे तुरन्त ही क्षमा कर देता। और यदि मुझमें बल होता तो मैं कदाचित् उसके चाबुकका चुम्बन भी करता। जिसने 'चौरासी वैष्णवनकी वार्ता' पढ़ी है उसे इस बातपर आश्चर्य न होना चाहिए। लेकिन प्रशंसकने आलोचकपर प्रहार कर मुझपर चाबुकसे भी अधिक तीव्र प्रहार किया है। उसे क्षमा प्रदान करनेकी हदतक कमसे कम मेरी अहिंसा आज तो नहीं जाती। यदि इस प्रशंसकसे मेरी भेंट हो जाये तो उसे मेरे कोधको सहन करना ही होगा। आलोचकको जैसा लगा वैसा उसने कहा। लेकिन प्रशंसकने जो माना वैसा आचरण नहीं किया। स्वामीजी और मौलानाकी भाषामें तो प्रशंसकने अपने धार्मिक सिद्धान्तको निन्दित किया। और उसका धार्मिक सिद्धान्त चाहे कितना ही सुन्दर क्यों न हो तथापि आचरणमें वह आलोचककी अपेक्षा हलका उतरा।

मेरी जयमाला तो मेरे पास ही रहेगी। प्रशंसकके गले में तो मैं उसे कदापि नहीं डालूंगा। आलोचक तो बेचारा विपक्षी ठहरा इसलिए आजके वातावरण में वह उसके गलेमें भी नहीं डाली जा सकती। लेकिन यदि वातावरण बदल जाये और वह माला इनमें से किसी एकको पहनानी ही पड़े तो मैं उसे आलोचकको ही पहनाऊँगा और हिमालय भाग जाऊँगा।

सहनशीलता स्वराज्यवादीका प्रथम लक्षण है। जबतक यह संसार विद्यमान है तबतक भिन्न-भिन्न विचारोंके लोग तो रहेंगे ही। स्वराज्य तो सभी मतवादियोंके लिए होगा। यदि हम लम्बी और छोटी गर्दनवाले सभी व्यक्तियोंके सिर काटने लग जायें तो समान गर्दनवाले लोगोंकी जोड़ी तो रह ही नहीं जायेगी। अर्थात् हमारे लिए दूसरोंकी स्वतन्त्रताको अपनी स्वतन्त्रता जितना सम्मान दिये बिना छुटकारा नहीं है। सरकार के साथ हमारी लड़ाई किस बातकी है? क्या वह विचार-स्वातन्त्र्यकी ही नहीं है? मेरे विचार सरकारको बुरे लगे इसलिए उसने मुझे गिरफ्तार कर लिया। उपर्युक्त तिब्बिया कालेज के विद्यार्थीने और कलकत्ते के मेरे प्रशंसकने भी सरकारके रास्ते को ही अपनाया, इसलिए वे सरकारके सहयोगी बने। यदि हिन्दू और मुसलमान दोनों एक-साथ रहकर स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें निम्न पाठको कंठस्थ कर लेना चाहिए और तदनुसार आचरण करना चाहिए :

"एक-दूसरे के विचार और आचारको सहन करना और अपने-अपने आचारके पालन में एक-दूसरे के बीच दखल न देना।"