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मैंने विद्यापीठसे[१] अपने संकोचके इन दोनों कारणोंपर ध्यान देनेकी प्रार्थना की थी। इसके परिणामस्वरूप विद्यापीठने शिक्षाके लिए स्वतन्त्र मासिक निकालने के स्थानपर हर महीने 'नवजीवन' का एक विशेष कोड-पत्र निकालनेका निश्चय किया है। विद्यापीठके कार्यकर्त्ताओंको ऐसा महसूस हुआ है कि विद्यापीठकी प्रवृत्तियोंका परिचय देनेवाली और शिक्षा-सम्बन्धी उसके विचारोंको व्यक्त करनेवाली उनकी एक ऐसी स्वतन्त्र पत्रिका होनी चाहिए जो शिक्षकों, माता-पिताओं तथा शिक्षार्थियोंको सहायक सिद्ध हो। उनका यह खयाल सही है या गलत, यह तो अनुभव ही बता सकेगा। इतना तो स्पष्ट है कि विद्यापीठकी महान् प्रवृत्तियों के सम्बन्धमें शिक्षकों, माता-पिताओं तथा शिष्योंको अभी बहुत-सी जानकारी हासिल करनी है। हम सब आशा करते हैं कि यह नया उपक्रम इस आवश्यकताको पूरा करेगा। शिक्षितवर्ग अगर उसकी सहायता करेगा तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह नई प्रवृत्ति अवश्य सफल होगी।

बच गये

[दक्षिण आफ्रिका] भारतीयोंके सिरपर भंगीवाड़े में रहनेकी जो तलवार लटक रही थी उससे फिलहाल वे बच गये जान पड़ते हैं। श्रीमती सरोजिनीके प्रयत्नोंको अनपेक्षित रूपसे सफलता मिली है। जनरल स्मट्सको[२] यह लगा कि दक्षिण आफ्रिकाकी सरकारको जनताका समर्थन प्राप्त नहीं है, इसलिए उन्होंने दक्षिण आफ्रिकाकी संसद्को भंग कर नये चुनाव करवाने के अपने निश्चयकी घोषणा की है। इसके फलस्वरूप वर्तमान संसद्में जो नये कानून बनाये जानेवाले थे उन्हें फिलहाल स्थगित कर दिया गया। लेकिन नई संसद्में भी कोई भारतीयोंके साथ न्याय करनेवाले सदस्य नहीं आनेवाले हैं। दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले भारतीय भाइयोंके प्रति अगर उनका रवैया वर्तमान सदस्योंसे भी अधिक कड़ा हो तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं होगी। लेकिन "संकटसे बच निकलनेवाला व्यक्ति सौ वर्षतक जीवित रहता है", इस बातको ध्यान में रखकर हम फिलहाल तो सन्तोष कर लेते हैं।

सजग लोकमतका मूल्य

दक्षिण आफ्रिकामें जो घटनाएँ हो रही हैं उनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। केवल एक ही नगर में अपने प्रतिनिधिकी हार होनेपर जनरल स्मट्सने सारे देशका कारोबार रोक दिया है। संसद्को भंग करते समय उन्होंने कहा :

"यदि हमारे पक्षको जनताका समर्थन प्राप्त नहीं है तो वे शासनमें जिन नई नीतियों को दाखिल करना चाहते हैं उन्हें अभी तो दाखिल नहीं कर सकते। एक ही नगरके मतदाताओंने विरोधी पक्षको अपना मत दिया, हमारे लिए इतना ही पर्याप्त है।" ये वाक्य जनरल स्मट्सकी चतुराई और जनमतको स्वीकार करनेकी उनकी तत्परताके परिचायक हैं।

  1. गुजरात विद्यापीठ।
  2. जे॰ सी॰ स्मट्स (१८७०-१९५०); दक्षिण आफ्रिकाके प्रधान मन्त्री, १९१९-२४, १९३९-४८।