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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
क्या यही बात हमारे देशमें भी है?

यहाँ तो सरकार सामान्य रूपसे जनमतके विरुद्ध काम करनेमें ही विश्वास रखती है। जहाँ देखो वहाँ जनमतका अनादर ही दिखाई देता है। मौलाना हसरत मोहानी अथवा श्री हॉनिमैनके मामले सरकारकी दृष्टिसे महत्त्वहीन ही हैं। लेकिन सरकार उसमें भी जनमत के अनुसार नहीं चलना चाहती। शायद उसे जनमतका विरोध करनेमें ही रस मिलता हो।

यह चित्र और वह

दक्षिण आफ्रिका में माननीय युवराज के आगमन की तैयारियाँ हो रही थीं। लेकिन चूंकि अब गोरे निवासी नये चुनावोंकी सरगर्मियों में व्यस्त हो जायेंगे इसलिए जनरल स्मट्सने यह सन्देश भेजा कि फिलहाल तो युवराजके आगमनको स्थगित कर दिया जाये। इसलिए वह स्थगित कर दिया गया है। यह तो हुआ दक्षिण आफ्रिकाका चित्र।

आइए, अब हम १९२१ में विद्यमान यहाँकी स्थितिकी ओर देखें। एक समय ऐसा था जब यहाँकी सारी जनताने सरकारसे माननीय युवराजको यहाँ न बुलाने के लिए अनुनय-विनय की, लेकिन सरकार टससे मस न हुई। उसने अपनी ही बात रखी। उसका परिणाम कितना बुरा निकला, उसे अभीतक कोई भूला नहीं है। जनताने उनका जो अपमान किया,[१] सो अनिच्छापूर्वक ही किया। बम्बई में जनताने शान्ति बनाये रखने की अपनी प्रतिज्ञापर पानी फेर दिया और क्षण-भर के लिए हमें बाजी हाथसे निकलती हुई जान पड़ी।

जनताका ऐसा अनादर कबतक चलेगा? १९२० में कलकत्ता और नागपुरमें कांग्रेसने[२] इसका जो उत्तर दिया था वह आज भी कायम है। एक वाक्यमें कहें तो वह उत्तर यह है कि जनता जबतक तैयार—योग्य—न हो जाये तबतक अर्थात् :

  1. जनता जबतक सम्पूर्ण रूपसे स्वदेशी न पहनने लगे तथा विदेशी और यहाँकी मिलोंके कपड़ेका त्याग न करे तबतक,
  2. अथवा हिन्दुओं और मुसलमानोंके दिल एक न हो जायें तबतक,
  3. अथवा अस्पृश्य और दूर रखी जानेवाली जातियोंका सत्कार करके हिन्दू शुद्ध न हो जायें तबतक,
  4. अथवा जनता कांग्रेस-तन्त्रका ठीक तरहसे संचालन करना न सीख ले
  5. अथवा जनता व्यावहारिक शान्तिको सम्पूर्ण रूपसे मन, वचन और कर्म से स्वीकार न करे तबतक।
  1. नवम्बर १९२१ में जब युवराज बम्बई बन्दरगाहपर उतरे उस समय वहाँ जो दंगा हुआ था गांधीजीने यहाँ उसीकी ओर संकेत किया है।
  2. कांग्रेस का विशेष अधिवेशन सितम्बर, १९२०में कलकत्ता में और वार्षिक अधिवेशन दिसम्बर, १९२०में नागपुर में हुआ था।