पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/४९५

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अच्छी तरह से विचार करनेपर यह स्पष्ट हो जायेगा कि पाँचमें से अगर हम एक चीजपर भी सम्पूर्ण रूपसे अमल कर सकें तो अन्य चार स्वयंमेव हो जायेंगी। सरकारको दोष देना और गाली देना व्यर्थ है। इतना ही नहीं, ऐसा करना तो हमारी कायरताका सूचक है। जैसे हम हैं वैसी ही सरकार है। सरकार जनजागृतिका मापयन्त्र है।

मेरे दर्शन

एक भाईने मुझसे मिलने के बारेमें पत्र लिखा है। उसमें से मैं निम्नलिखित अंश उद्धृत कर रहा हूँ :[१]

इस पवित्र कुटुम्बको मेरे दर्शन तो क्या करने हैं, लेकिन मैं अवश्य उसके दर्शन करके कृतार्थ हो जाऊँगा और अपनी शक्तिमें वृद्धि करूँगा। इन लोगोंसे मिलना तो रविवारको ही सम्भव हो सकेगा और मैं उस रविवारकी बाट जोह रहा हूँ। यदि सभी कुटुम्ब कांग्रेसके रचनात्मक कार्योंपर इसी तरह अमल करें तो मुझे उनके दर्शन रामबाण दवा जैसे सिद्ध हों और हिन्दुस्तानको घर बैठे ही स्वराज्य मिल जाये।

स्वर्गीय मोतीलालसे क्षमा-याचना

ईश्वरने मुझे जो अनेक उपहार दिये हैं उनमें से एक उपहार शुभचिन्तक मित्रोंका भी है। वे निरन्तर मेरी चौकसी करते रहते हैं और मुझे भूलोंसे बचाते हैं अथवा मुझसे यदि कोई भूल हो जाती है तो उसमें सुधार करवाते हैं। तीन मित्रोंने संक्षिप्त लेकिन विवेकपूर्ण पत्र लिखकर मुझे बताया है कि 'नवजीवन' के गतांकमें वीरमगाँवमें ली जानेवाली जकात के मामले के सम्बन्धमें लिखते हुए मैंने बढवानके स्वर्गीय दर्जी मित्रका जिक्र पोपटलालके नामसे किया है। लेकिन उनका नाम तो मोतीलाल[२] था। मित्रोंका सुधार ठीक है। नाम और चेहरे याद रखने में मैं बहुत कच्चा हूँ, और मुझे उम्मीद है कि यह जानकर भाई मोतीलालके सगे-सम्बन्धी मुझे माफ करेंगे। मैं स्वयं अपनेको उनका सगा सम्बन्धी समझता हूँ। अफसोस कि मैं इतने दूरका सम्बन्धी सिद्ध हुआ हूँ कि नामतक भी याद न रख सका। मोतीलालकी आत्मा तो मुझे अवश्य माफ करेगी क्योंकि उनकी आत्माको भूल जाऊँ, ऐसा कच्चा मैं नहीं हूँ। मैं उन तीनों मित्रोंका जिन्होंने मुझे मेरी भूलका भान कराया है, उपकार मानता हूँ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १३-४-१९२४
  1. उक्त अंश यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र लेखकने लिखा था कि अहमदाबादके कांग्रेस अधिवेशनके बाद उसने, उसकी माताजी और बहनने कातनेका व्रत लिया था और उसे पूरी तरह निबाहा; अब वे लोग अपने घरमें अपना काता हुआ सूत खुद बुनते भी हैं और इस तरह अपने हाथकी कती और बुनी खादी पहननेका प्रयत्न कर रहे है। अन्तमें उसने अपनी माताजी और बहनके साथ गांधीजीके दर्शनकी अनुमति चाही थी।
  2. ये साबरमती आश्रम में दर्जाका काम सिखाने आते थे। देखिए आत्मकथा, भाग ५, अध्याय ३।