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३३४. मौलाना मुहम्मद अलीपर इलजाम

एक सज्जन लिखते हैं, गुजराती समाचारपत्रोंमें इस आशयकी ख़बर छपी है कि मौलाना मुहम्मद अलीने अपने एक भाषण में कहा है कि गांधीजी महा अधम मुसलमानसे भी नीचे हैं। ये सज्जन अपने पत्र में आगे लिखते हैं, 'मैं मानता हूँ कि मौलाना साहब ऐसा कभी नहीं कह सकते। तथापि 'नवजीवन' में यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि बात दरअसल क्या है, जिससे गलतफहमी दूर हो जाये।' मुझे बड़े अफसोसके साथ लिखना पड़ता है कि केवल गुजरातीके ही नहीं बल्कि अंग्रेजी के अखबारोंमें भी यह खबर प्रकाशित हुई है और उसके विषयमें चर्चा भी खूब हुई है।

भगवान् जाने हुआ क्या है, परन्तु हिन्दुओं और मुसलमानोंमें आजकल गलतफहमी की हवा चल रही है और एक-दूसरे के प्रति अविश्वास फैल गया है। मैं जानता हूँ कि इसके कुछ कारण हैं। मुझे यहाँ उनकी चर्चा करने की जरूरत नहीं मालूम होती। उत्तर भारत के हिन्दी और उर्दूके अखबारोंने तो हद ही कर दी है। डाक्टर अन्सारीने लिखा है कि ऐसा मालूम होता है मानो इन अखबारोंने एक-दूसरेपर इलजाम लगाना, झूठी अफवाहें फैलाना, एक-दूसरेके मजबकी निन्दा करना और इस प्रकार एक दूसरेको बदनाम करना ही अपना कर्त्तव्य मान लिया है। जान पड़ता है कि यह उनके रोजगारको बढ़ानेका साधन बन गया है। इस छूतकी बीमारीको किस तरह रोकें, यह एक विकट समस्या हो गई है। मेरी समझमें इसको हल करना कौंसिल-प्रवेशकी बनिस्बत ज्यादा जरूरी है। मुझे निश्चय है कि राज्य-तन्त्र संचालनकी हमारी क्षमता इस प्रश्नको हल करनेमें ही है। यदि हम देशके सम्मुख उपस्थित कुछ प्रश्नोंको हल कर सकें तो आज ही स्वराज्य हमारे हाथोंमें आया रखा है। जबतक हम इन गुत्थियोंको न सुलझा सकें तबतक स्वराज्य असम्भव है। कौंसिलें इन उलझनोंको दूर करनेमें असमर्थ हैं।

परन्तु मैं इस लेख में कठिनाइयोंकी छानबीन नहीं करना चाहता। यहाँ तो मैं मौलाना साहबपर किये गये आरोपोंकी ही जाँच करना चाहता हूँ।

मौलाना साहब से उनके पहले भाषणपर लखनऊकी एक सभामें एक सवाल पूछा गया। उन्होंने उसका जवाब यह दिया : "महात्मा गांधी के धर्म-सिद्धान्तकी बनिस्बत एक व्यभिचारी मुसलमानके धर्म-सिद्धान्तको मैं ज्यादा अच्छा मानता हूँ।" इसमें मौलाना साहबने महात्मा गांधी और व्यभिचारी मुसलमानकी तुलना नहीं की, बल्कि दोनोंके धार्मिक मतकी ही तुलना की है। अब जरा यह देखें कि यह तुलना उन्हें क्यों करनी पड़ी। मुसलमानोंने मौलाना साहबपर ऐसा इलजाम लगाया कि मौलाना तो गांधी-परस्त अर्थात् गांधी-पूजक हो गये हैं। गांधी-परस्त होना यानी गांधीको मूर्ति मान लेना,—यह मान लेना कि दुनिया में उनके सिवा दूसरा कोई नहीं। ऐसा करना मानो गांधीका धर्म कबूल कर लेना है। तो मौलाना साहबपर यह इलजाम था। कितने ही मुसलमानोंके इस इलजामका जवाब मौलानाने पूर्वोक्त वाक्योंमें दिया है। इसका अर्थ