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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं धन्यवाद देता हूँ। आशा है कि उन्होंने जो काम आरम्भ किया है उसे वे पूरा करेंगे और आगे बढ़ायेंगे।

अब यह सवाल है कि नागरिकोंका पैसा तो समितिके हाथमें जायेगा, वे कर तो देंगे ही। मेरी सलाह है कि अभी इस सवालपर विचार न किया जाये। यदि नागरिक लोग शिक्षाके कार्यक्रमको अच्छी तरह पार लगा दें तो मैं मानूँगा कि उनकी पूरी जीत हो गई है। इस कामको पूरा करके ही दूसरे सवालोंपर लड़ाई करना ठीक होगा। यदि अभी हम दूसरे सवालोंपर लड़ना शुरू कर देंगे तो सम्भव है कि इस कामका, जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है, नुकसान हो। इसके अलावा दूसरे सवालपर लड़ाई छेड़नेसे कटुता बढ़ने की भी सम्भावना है। शिक्षाका कार्यक्रम तो मिठाससे और बिना किसी गड़बड़ी के पूरा हो जाये, इसीमें शोभा है। यदि नागरिक लोग यह काम स्वतन्त्र रूपसे चला सकें और उसमें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष किसी रूपमें जोरजबरदस्ती न करें तो यह कोई मामूली बात नहीं होगी।

व्यापारियोंकी चिन्ता

ऐसा दिखाई देता है कि व्यापारी लोग आजकल घबरा रहे हैं। उनका खयाल है कि वर्त्तमान आन्दोलनसे व्यापारका सत्यानाश हो जायेगा। यह खयाल सच नहीं है। यह आन्दोलन व्यापार या व्यापारियोंके खिलाफ नहीं बल्कि व्यापारके लिए चलाया गया है। आज व्यापारी लोग सौ रुपये पीछे सिर्फ पाँच रुपये पैदा करते हैं और बाकी बाहर भेजते हैं। इस आन्दोलनके सफल हो जानेपर सौके-सौ रुपये ही व्यापारियोंके घरमें रहेंगे; या वे पाँच रुपये अपने घरमें रखकर पंचानवे रुपये गरीबों के घरमें पहुँचायेंगे।

व्यापारियोंको सिर्फ निर्भय होनेकी आवश्यकता है। कुछ विश्वास रखनेकी जरूरत है और कुछ साहस दिखाने की आवश्यकता है। सरकार व्यापार कराती हो, सो बात नहीं। वह तो गुलामी और अधिक हुआ तो दलाली कराती है। यदि वह एक हिन्दुस्तानीको करोड़पति होने देती है तो उसके पीछे यूरोपमें सौ करोड़पति बनाती है। जो व्यापारी इस सीधे हिसाबको समझ जाये वह तो इस युद्धमें कूद पड़े, और यदि व्यापारी अपने हिस्सेका काम पूरा करें तो यह लड़ाई शीघ्र ही समाप्त हो जाये और वे तथा देश शान्तिके साथ अपने-अपने काममें लग जायें।

कपड़े के व्यापारियोंको अधिकसे-अधिक हिम्मत दिखाने की आवश्यकता है। विलायती कपड़े तथा मिलके कपड़ेका व्यापार छोड़कर उन्हें शुद्ध खादीका ही व्यापार करना चाहिए। खादीका व्यापार भी ईमानदारीसे किया जाये तो खूब चल सकता है और सैकड़ों आदमी उसके द्वारा अपनी जीविका कमा सकते हैं तथा लोक-कल्याण हो सकता है। यह माननेका तो कोई कारण ही नहीं है कि व्यापारी लोग सचाईसे काम नहीं ले सकते। अनुभवसे व्यापारी लोग देखेंगे कि यदि वे अपने लोभकी एक हद बाँध लें तो उन्हें असत्यका अवलम्बन करनेकी जरा भी जरूरत न रहे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन ५–३–१९२२