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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है वह शुद्ध असहयोगी नहीं हो सकता। सुधारकके लिए पहली सीढ़ी है लोकमत तैयार करना। उसे चाहिए कि जातिके समझदार लोगोंसे मिले और उनकी दलीलें सुने। यदि सुधारक सीधा-सादा आदमी हो, उसे कोई जानता न हो और समझदार लोग उसकी बात न सुनें तो उसे क्या करना चाहिए? यदि वह इतना दीन-हीन हो तो उसे जानना चाहिए कि वह सुधारका निमित्त बनने के लिए उत्पन्न ही नहीं हुआ है। हम सब लोग चाहते हैं कि संसारसे झूठका नाश हो जाये, परन्तु झूठे लोगोंको कौन समझाये? यह सुधार बहुत आवश्यक है। फिर भी हम धीरज धरे क्यों बैठे हैं? होनी चाहिए। हम तमाम बुराइयाँ दूर बैठें?

बात यह है कि सुधारकमें अहंता न करनेकी जिम्मेवारी अपने सिरपर क्यों ले चाहिए कि हम खुद सच बोलें और सच्चा व्यवहार करें। इसी प्रकार जातिकी कुरीतियोंके सम्बन्धमें भी हमें खुद अपना आचार-विचार स्वच्छ रखना चाहिए और दूसरेके सम्बन्धमें तटस्थ रहना चाहिए।

"मैं यह करता हूँ, मैं वह करता हूँ, ऐसा सोचना तो अज्ञान है। जैसे गाड़ी के नीचे उसके साथ-साथ चलनेवाला कुत्ता यह मान बैठता है कि इस गाड़ीमें लदे भारको मैं ही खींच रहा हूँ।[१]

कविकी इस उक्तिको याद रखना चाहिए और निरभिमान होकर रहना चाहिए।

जब निरभिमान रहते हुए भी हम यह महसूस करते हों कि यह जिम्मेवारी हमारी है तब हमपर विशेष कर्त्तव्यका भार आ पड़ता है। जातिके मुखिया और पंच निरभिमान होने का दावा करके जातिकी कुरीतियोंको दरगुजर नहीं कर सकते; क्योंकि मुखियापन अथवा पंचपनको अंगीकार करके वे जातिकी नीतिके रक्षक बने हैं। यदि एक भी कन्याका विक्रय होगा तो उस निर्दोष बालिकाका शाप उन्हींपर पड़ेगा।

परन्तु यदि मुखिया या पंच खुद उस बुराईको दूर करनेका प्रयत्न न करें, इतना ही नहीं बल्कि खुद ही कन्या विक्रय करें तो फिर उस बेचारे जाति-सुधारकको क्या करना चाहिए? वह खुद तो स्वच्छ हो गया है और जातिके तमाम अगुओंसे मिल चुका है। उन्होंने उसे कुत्तेकी तरह दुत्कारकर भगा दिया है और उसपर गालियों की बौछार की है। बेचारा हताश और खिन्न होकर घर आ गया है। नीचे जमीन और ऊपर आसमान के सिवा उसे कोई सहारा दिखाई नहीं देता। यही समय है कि ईश्वर उसकी पुकार सुनेगा। परन्तु अभी तो पहली ही सीढ़ी आई है। वह तपस्या के योग्य बने अतः यह उसकी पूर्व परीक्षा हुई है। अब वह अपनी अन्तरात्माकी आवाज सुन सकता है। वह अन्तर्यामीसे पूछता है—मैंने अपमान सहन किया है, क्या मैं फिर भी अपने बन्धुओंसे प्रेम रखता हूँ? क्या मैं उनकी सेवा करनेके लिए तैयार हूँ? क्या मैं उनके जूते खाना भी बरदाश्त कर सकूँगा? यदि उसका अन्तर्यामी इन तमाम सवालोंके जवाबमें 'हाँ' करे तो उसे समझना चाहिए कि वह दूसरा कदम उठानेकी तैयारी कर चुका है।

  1. नरसी मेहताका एक प्रसिद्ध भजन