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३४२. पत्र : गंगाबहन मेघजीको[१]

चैत्र सुदी ११ [१५ अप्रैल, १९२४]

प्रिय बहन,

आपको पत्र लिखनेका विचार नित्य ही करता हूँ, किन्तु एकके-बाद-एक काम आ जाता है और मैं उसमें भूल जाता हूँ। आज प्रातःकालकी प्रार्थनाके तुरन्त बाद आपको पत्र लिखने बैठा हूँ। चि॰ रामदासको आपके पास संगीत सीखनेके लिए भेजने वाला था किन्तु भेजा नहीं, क्योंकि उसके सम्बन्धमें श्री जयकरने बहुत उद्योग किया है और मुझे उनका अनादर करना उचित नहीं जान पड़ा।[२] उसको एक ही दिनमें दो जगह भेजने में बहुत मेहनत पड़ जाती, इसलिए भेजना अभी स्थगित रखा है।

फिर भी हमें संगीत शिक्षकका तो आभार मानना ही चाहिए; क्योंकि उन्होंने तो चि॰ रामदासको संगीत सिखाने की बात तुरन्त स्वीकार कर ली थी।

आपको फुरसत मिले तब तुरन्त आ जायें।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ७७७५) से।
सौजन्य : गंगाबहन वैद्य
 

३४३. भेंट : 'हिन्दू' के प्रतिनिधिसे

[बम्बई
१५ अप्रैल, १९२४]

हमारे प्रतिनिधिने गांधीजीसे पूछा कि "त्रावणकोरके अस्पृश्यता-सम्बन्धी सत्याग्रहके बारेमें आपकी क्या राय है? हमारा पूरा देश किस प्रकार उसमें सहायता दे सकता है और सहायता देनेका सबसे अच्छा तरीका कौन-सा है?" महात्माजीने लम्बा-सा उत्तर देते हुए कहा :

आन्दोलनके नेताओंके बारेमें जो कुछ मैं जानता हूँ, उसके आधारपर मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि उन्होंने बड़ी सतर्कता और विवेकसे काम लिया है और प्रारम्भिक तैयारियाँ कर लेनेपर ही उन्होंने इसमें हाथ डाला है। मुझे जो समाचार

  1. बादमें गंगाबहन वैद्यके नामसे प्रसिद्ध।
  2. गांधीजी जब जुहूमें थे तब रामदास जयकरके पास संगीत सीखनेके लिए जाया करते थे।