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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकर सुधार-कार्य करनेमें रुचि नहीं रखते। चूँकि परिस्थिति ऐसी है, इसलिए उनके सलाहकारोंकी दिलचस्पी सिर्फ इसी बात में है कि शान्ति कायम रखनेके लिए जरूरी कार्रवाई करें। परन्तु जो नेतागण वहाँ आन्दोलन चला रहे हैं, वे अब भी आन्दोलनको उचित सीमाओं में रख सकते हैं और उसे दरबार- विरोधी होनेसे बचा सकते हैं।

फिर हमारे प्रतिनिधिने पूछा : "एशियाई विरोधी विधानपर दक्षिण आफ्रिकामें श्रीमती नायडूको उपस्थितिका प्रभाव किस रूपमें पड़ा है और उससे भारतीय समाजको कहाँतक लाभ पहुँचा है?" महात्माजीने श्रीमती नायडूको बहुत जोरदार शब्दों में प्रशंसा करते हुए कहा :

स्वयं श्रीमती नायडू तथा दक्षिण आफ्रिका निवासी मेरे कुछ पुराने मित्रोंने जो विवरण मेरे पास भेजे हैं, उनसे मुझे इस बातका विश्वास हो गया है कि श्रीमती नायडूकी उपस्थितिसे वहाँ बसे हुए भारतीयों को बहुत लाभ हुआ है। निःसन्देह उन्होंने उन्हें हिम्मत बँधाई है और उनमें आशाका संचार किया है। उन्होंने अपनी अद्वितीय प्रतिभा द्वारा अनेक यूरोपीयोंको भारतीयोंका पृष्ठपोषक बना दिया है। जो भी हो, कटुताकी भावना नरम तो पड़ ही गई है। श्रीमती नायडूने अपने एक पत्रमें मुझे लिखा है कि उनकी बातें सुनकर यूरोपीय लोगोंकी आँखें डबडबा आईं। अगर यह पत्र बहुत ही निजी न होता तो मैं उसे आपको भी पढ़ने के लिए देता। मेरा खयाल है कि 'केप टाइम्स' ने श्रीमती नायडूके क्रिया-कलापके बारेमें जो कड़ी बातें लिखी हैं, वे नितान्त एकपक्षीय हैं। उसकी बातोंको सुसंस्कृत यूरोपीय लोगोंका विचार नहीं माना जा सकता। मेरी रायमें तो श्रीमती नायडूने बहुत ही विवेक और सूझ-बूझसे काम लिया है। इस बातकी तो आशा भी नहीं की जानी चाहिए कि उनके शब्दोंका यूरोपीयोंके मनपर स्थायी प्रभाव होगा। उनके मनपर कोई स्थायी प्रभाव तो वहाँके भारतीय ही डाल सकते हैं, जिसके लिए उन्हें आदर्श आचरण करना होगा और एकमत होकर काम करने और कष्ट उठानेकी सामर्थ्यका परिचय देना होगा।

यह पूछनेपर कि हिन्दू-मुस्लिम समस्याका आपके लेखे सबसे अच्छा समाधान क्या है, महात्माजीने कहा :

जिन नेताओंने इस समस्या के समाधानको अपना प्रमुख काम बना लिया है, उनसे मिले बिना इस सम्बन्धमें कुछ न कहना ही मैं बेहतर समझता हूँ। इस सम्बन्धमें मेरे विचार बहुत दृढ़ हैं और जहाँतक मैं समझता हूँ, अधिक तर्क-वितर्कका उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़नेवाला है। परन्तु मैं जल्दबाजी नहीं करना चाहता और जहाँतक किसी मनुष्यके लिए सम्भव है, इस सम्बन्धमें मैं बिलकुल अन्ततक उचित बात स्वीकार करनेके लिए अपना दिमाग खुला रखना चाहता हूँ।

शुद्धि और संगठनके बारेमें प्रश्न करनेपर महात्माजीने उत्तर दिया :

जब मैं पूरे प्रश्नके सम्बन्ध में अपने विचार स्पष्ट करनेकी स्थितिमें होऊँगा तभी इस विषय में मेरे विचार मालूम हो जायेंगे।

जबतक कौंसिल प्रवेशके प्रश्नपर स्वराज्यवादी नेताओं और श्री दाससे, जिनकी राह देखी जा रही है, पूरी तरह बातचीत नहीं हो जाती तबतक महात्माजी इस