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३४८. जेलके अनुभव—१

पाठक जानते हैं कि मैं एक पुराना पापी हूँ। १९२२ के मार्च मासकी मेरी जेल यात्रा जिन्दगी की पहली यात्रा नहीं थी। दक्षिण आफ्रिकामें में तीन बार सजा भोग चुका हूँ। दक्षिण आफ्रिकाकी सरकार उस समय मुझे एक खतरनाक कैदी मानती थी, इसलिए वह मुझे एक जेलसे दूसरी जेलमें घुमाती रहती थी। इससे मुझे जेल जीवनका बहुत अच्छा अनुभव हो गया।[१] हिन्दुस्तानमें जेल जाने से पहले मैं इस तरह छः जेलोंमें रह चुका था और उतने ही सुपरिटेंडेंटों और उनसे अधिक जेलरोंसे मेरा वास्ता पड़ चुका था। इसलिए जब १० मार्चकी सुन्दर रात्रिमें भाई बैंकरके साथ मुझे साबरमती जेल ले जाया गया, तब कोई नया और अनसोचा अनुभव होनेपर मनुष्यको जो अटपटापन लगता है, वह मुझे नहीं लगा। मुझे तो लगभग ऐसा ही आभास हुआ मानो मैं और नये मित्र बनाने के लिए एक घरसे दूसरे घरमें जा रहा हूँ। गिरफ्तारीके वक्त अधिकारियोंका सुलूक देखकर ऐसा लगा मानो मुझे जेल नहीं, किसी विनोद वाटिका में ले जाया जा रहा है। पुलिस सुपरिंटेंडेंट श्री होली सज्जन पुरुष हैं। आश्रममें उन्होंने कदम तक नहीं रखा, अनसूया बहन द्वारा सन्देश भेजा कि वे गिरफ्तारीका वारंट लेकर आश्रम के दरवाजेपर मोटरमें ले जाने के लिए मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहलवाया था कि तैयार होनेके लिए मैं अपनी इच्छानुसार समय ले सकता हूँ। आश्रमसे अहमदाबाद वापस जाते हुए भाई बैंकरको श्री होली रास्ते में ही मिल गये थे और उन्हें वहीं पकड़ लिया गया था। अनसूयाबहनकी दी हुई खबर के लिए मैं तैयार ही था। सच कहूँ तो सभी यह सोच रहे थे कि वारंट अब आया, तब आया। खासी प्रतीक्षाके बाद सबको सो जाने के लिए कह दिया गया था और मैं भी सोनेकी ही तैयारीमें था। मैं उसी दिन शामको अजमेरसे वापस आया था और थका हुआ था। वहाँ मुझे अत्यन्त विश्वस्त सूत्रोंसे मालूम हो गया था कि मेरी गिरफ्तारीका वारंट अजमेर भेज दिया गया है। परन्तु वहाँके अधिकारियोंने उसे तामील करना नहीं चाहा, क्योंकि जिस दिन वारंट अजमेर पहुँचा उसी दिन मैं अहमदाबाद लौट रहा था। इसलिए अन्तमें जब वारंटकी खबर आई तब हम सबने शान्तिकी साँस ली। मैंने अपने साथ एक अतिरिक्त कच्छ, दो कम्बल और 'भगवद्गीता', 'आश्रम भजनावलि', 'रामायण', 'कुरान' का रॉडवेलकृत भाषान्तर और कैलिफोर्नियाकी एक पाठशालाके विद्यार्थियों द्वारा मुझे हमेशा अपने साथ रखनेकी इच्छासे दी हुई ईसाके 'गिरि-प्रवचन' ('सरमन ऑन दि माउन्ट') ये पाँच पुस्तकें ले लीं। जेल सुपरिटेंडेंट खानबहादुर नसरवानजी वाछाने हमारा प्रेमपूर्ण स्वागत किया और हमें एक विशाल स्वच्छ चौकमें स्थित कोठरियोंके एक ब्लाकमें ले

  1. गांधीजीके पहले के जेल्के अनुभवोंके लिए देखिए खण्ड ८ तथा ९। इन अनुभवका संक्षिप्त विवरण यंग इंडिया २९-६-१९२२, २०-७-१९२२ तथा १०-८-१९२२ के अंकों में प्रकाशित हुआ था।