पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/५१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साथी के जेल जाने से कोई हानि नहीं होती। मर्यादा और नम्रताके साथ सहन किये जानेवाले मूक कष्ट सहनकी वाणी जितनी स्पष्ट होती है, उतनी अन्य किसी भी चीजकी नहीं होती। यही ठोस कार्य है, क्योंकि इसमें कोई दिखावा नहीं होता। यही हमेशा सच्चा है, क्योंकि इसमें गलत अनुमान लगानेका अन्देशा नहीं होता। इसके सिवा यदि हम सच्चे काम करनेवाले हों तो एक साथी के जानेसे हमारा उत्साह और कार्य क्षमता भी बढ़नी चाहिए। जबतक हम यह मानना नहीं छोड़ देते कि अमुककी स्थानपूर्ति करना असम्भव है, तबतक हम संगठित कार्यके योग्य नहीं बन सकते; क्योंकि संगठित कार्यका अर्थ है कार्यकर्त्ताओंकी कमी होनेपर भी काम चालू रखने की क्षमता। इसलिए मित्रोंको अथवा स्वयं हमको अकारण कष्ट सहन करना पड़े तो उसमें हमें आनन्द ही मानना चाहिए और विश्वास रखना चाहिए कि जिस कार्यके लिए हमने कष्ट सहा है, वह यदि सच्चा है तो हमारे कष्टसे उस कार्यको लाभ ही होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७-४-१९२४
 

३४९. 'चरखेकी गुनगुन'

चरखेकी सम्भावनाओंका यह उत्साहपूर्ण वर्णन सभीको समान रूपसे रोचक लगेगा। लेखक[१] संयुक्त प्रान्तका एक सुशिक्षित व्यक्ति है और स्वयं एक अनुभवी कातनेवाला है। वह अपना नाम विज्ञापित नहीं करना चाहता।

मैं एक सीधी-सादी वस्तु हूँ और मेरी यन्त्र रचना कोई भी समझ सकता है। मैं एक या दो रुपये में खरीदा जा सकता हूँ। में यहाँसे वहाँ सुगमतापूर्वक ले जाया जा सकता हूँ और सभीको सरलतासे सुलभ हूँ। में चक्कीसे बहुत हलका हूँ और इसलिए स्त्रियोंको बहुत प्रिय हूँ। मेरी माँग शादियोंके समय होती है। मेरे द्वारा उत्पादित वस्तु पण्डितोंकी धार्मिक माँगोंकी पूर्ति करती है क्योंकि में सदा पवित्र हूँ। में देशके लाखों क्षुधा-पीड़ित ग्रामीणोंको रोटी दे सकता हूँ; किसानोंका तन ढँक सकता हूँ; भिखमंगोंको जीविका दे सकता हूँ और पतिता बहनोंको तथा उन्हें जिनकी लज्जा अन्य प्रकारसे लम्पट व्यक्तियोंकी कामुकता कारण अरक्षित रहती है, प्रतिष्ठापूर्ण धन्धा दे सकता हूँ। में सभी निठल्ले लोगोंके मनोंको काममें लगाकर 'शैतानके कारखानों' को ध्वस्त करनेका आदी हूँ। केवल उन्हें मुझे चलाना भर चाहिए। मैं बुनकरों, धुनियों, लुहारों और बढ़इयोंको भोजन देता हूँ। में भारतको उस भारी अर्थ-निस्सारणसे बचा सकता हूँ जो उसके जीवन-रक्तको सुखाता रहा है। में भारतके विभिन्न समुदायोंको एक-दूसरेपर निर्भर बनाकर उनमें वास्तविक एकता स्थापित कर
  1. परशुराम मेहरोत्रा; १९२२ से १९३३ तक गांधीजीके सेवक और आश्रमवासी।