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६. पत्र : देवदास गांधीको

रविवार [५ मार्च, १९२२][१]

चि॰ देवदास,

वसुमतीबनके बारेमें तुमने जैसा लिखा वैसा ही है। कृष्णदासको तो मैं योगी मानता हूँ।

उसकी शान्ति, धीरज, बुद्धि, एकाग्रता आदि सारे गुण अनुकरणीय हैं। अपने पत्र में तुमने प्रश्न पूछे सो ठीक ही किया। मैं अनेकान्तवादी हूँ। एक वस्तुके अनेक पहलुओंको देख सकता हूँ। गार्ड किसी सवारीको [बिना टिकटके यात्रा करते हुए] पाये तो यह जरूरी नहीं कि उससे पिछले चेकिंग स्टेशनसे ही किराया माँगा जाये। यह नीति-व्यवहार है। इसी बातको ध्यान में रखकर मैंने यह कहा था कि किराया आबूरोडसे नहीं दिया जा सकता। इसके सिवा, ऐसा करना तुम्हारा कर्त्तव्य तो कदापि नहीं था। ये लड़के निर्दोष भावसे सवार हुए थे। मैंने यह बात स्वीकार की थी कि यह किराया उन्हें देना चाहिए, यानी पालनपुरसे देना चाहिए। मैं यह समझा था कि वे यह किराया देनेसे इनकार कर रहे थे।

मॉडर्न स्कूलका मामला ऐसा है कि लड़कोंको युवराजके सम्मानके काम में जबरदस्ती घसीटा गया। इसके प्रतिकारका उपाय धरना देना नहीं था। इस चीजके खिलाफ आवाज उठा सकते थे। इसके सिवा मैंने ऐसा समझा कि तुम्हारा कहना यह है कि लड़कोंको सजा दी गई इसलिए तुमने धरना देनेके उपायका आश्रय लिया। मैं कहूँगा कि यह तो और भी खराब हुआ।

अभी और कोई प्रश्न पूछना हो तो पूछना।

अब चूंकि जवाहरलाल [जेलसे रिहा होकर] आ गये हैं, इसलिए तुम्हें काफी मदद मिलेगी।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :] वक्तकी पाबन्दीका नियम पालना।
मुल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ७९७९) की फोटो नकलसे।
 
  1. पत्रमें जवाहरलाल नेहरूके जेलसे रिहा होनेका उल्लेख है; उनकी रिहाई ३ मार्च, १९२२ को हुई थी।