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७. पत्र : देवदास गांधीको

मौनवार [ ६ मार्च, १९२२][१]

चि॰ देवदास,

यह तार और पत्र[२] यहाँ मिले हैं। पत्र सतीश बाबूका है। इसका उत्तर तुरन्त देना।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च :]

मैंने तुम्हें कल उत्तर भेजा है। जब तुम्हें फुरसत मिले तब हेडमास्टर जोजेफसे मिल तो लेना ही।

मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ७९८०) की फोटो-नकलसे।
 

८. पत्र : मथुरादास त्रिकमजीको[३]

मौनवार [६ मार्च, १९२२]

अब तो तुम्हारा मन शान्त हो गया होगा; इसलिए ज्यादा कुछ लिखनेकी बात नहीं रह जाती। महादेवको अभी नहीं लिखा है। आज लिखनेका विचार है। यदि लिखा तो उसे लिफाफेमें रखकर तुम्हें भेज दूँगा और तुम उसे महादेवको भेज देना। इससे तुम्हारी जिज्ञासा शान्त हो जायेगी।

तुम मुझे जैसा चाहो वैसा पत्र लिख सकते हो। इसके लिए माफी मांगनेकी जरूरत नहीं। उससे मैं तो कुछ-न-कुछ सीख ही सकता हूँ।

मैं अनेकान्तवादी हूँ। जैन दर्शनसे सबसे महत्त्वपूर्ण बात मैंने यही सीखी है। वेदान्तमें वह गूढ रूपमें है, जैन-दर्शनमें स्पष्ट है। मैंने दिल्लीमें जो कुछ किया[४] उसमें, और आन्दोलनको स्थगित करके मैं अब जो कुछ कर रहा हूँ उसमें मुझे तनिक भी विरोध नहीं दिखाई देता। यदि में दिल्लीमें कड़ा रुख अपनाता तो वह मेरी हिंसा मानी जाती। मेरे साथी निश्छल भावसे अपनी मुश्किलोंको मेरे सामने रख रहे थे, उन्हें मैं कैसे दुत्कार सकता था? लेकिन जब मैंने प्रान्तोंको स्वतन्त्रता देनेका निश्चय किया

  1. 'पुनश्च' के अन्तर्गत जोड़े गये भागमें स्पष्टतः मॉडर्न स्कूलकी उसी घटनाकी ओर संकेत है जिसका उल्लेख गांधीजीने देवदासको लिखे अपने ५ मार्च, १९२२ के पत्रमें किया है।
  2. ये उपलब्ध नहीं हैं।
  3. गांधीजीके भानजे।
  4. गांधीजीने २४ फरवरी, १९२२ को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में सामूहिक सविनय अवज्ञाको स्थगित करने की सलाह दी थी; देखिए खण्ड २२, पृष्ठ ५०५-९।