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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारण मेरी शारीरिक अवस्था है। अभीतक मेरा शरीर इस लायक नहीं हुआ है कि मैं निकट भविष्य में किसी लम्बे विचार-विमर्श के बोझको बरदाश्त कर सकूँ। इस प्रकारके सम्मेलनसे लाभ तभी पहुँच सकता है जब वह यथासम्भव शीघ्र, अधिकसे अधिक इस माह अन्ततक आयोजित कर लिया जाये। परन्तु देखता हूँ कि इस मासके अन्ततक मेरा स्वास्थ्य इस लायक नहीं हो पायेगा; और फिर आखिर उस सभा में होगा भी क्या? जितनी वाकफियत प्राप्त हो सकती है उतनी मैं हासिल कर ही रहा हूँ। जो वर्तमान जटिल प्रश्न हमारे सामने हैं उनपर में शीघ्र ही अपनी राय कायम कर लूँगा। मेरी रायको कितना ही महत्त्व क्यों न दिया जाता हो फिर भी आखिर उसे एक व्यक्तिकी ही राय समझना चाहिए; और इसलिए वह प्रमाण भूत नहीं कही जा सकती। कांग्रेसवालों के लिए तो कांग्रेसका निर्णय और उसके अभावमें कार्य समिति अथवा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीका निर्णय ही प्रमाणभूत माना जा सकता है। हाँ, मेरे सुझावोंको अखिल भारतीय कांग्रेसकी बैठक होनेपर विचारार्थ रखा जाना अलबत्ता उचित माना जा सकता है। कार्य समितिकी बैठक तो बहुत ही जल्दी होनेवाली है; किन्तु मैं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीसे राय लिये बिना कोई नई नीति अथवा कार्यक्रम निर्धारित कर ही नहीं सकता।

इस प्रकार यद्यपि कार्यकर्त्ताओं की सभा बुलाना बिलकुल जरूरी नहीं है तो भी वे जिन मुद्दों को लेकर परेशान हैं उनके सम्बन्धमें वे अपने विचार यथासम्भव संक्षेपमें लिखकर भेज दें तो मुझे निर्णयपर पहुँचने में बड़ी मदद मिलेगी। ऐसे तमाम लेख इस महीने के अन्ततक पोस्ट अन्धेरी, बम्बई के पतेपर भेज दिये जाने चाहिए।

गुरुद्वारा आन्दोलन

५०० अकालियोंके एक और जत्थेने, गंगसर गुरुद्वारे जाते हुए, रास्तेमें रोके जानेपर पूरी शान्तिके साथ आत्मसमर्पण कर दिया और उसे नाभाके अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। यदि हम ऐसी गिरफ्तारियोंके अभ्यस्त न हो गये होते तो आज इस प्रकारकी खबरसे सारे देशमें खलबली मच गई होती। पर अब तो हमारे लिए ये मामूली बातें हो गई हैं। न तो उनपर किसीको आश्चर्य या कुतूहल होता है, न दुःख ही। जिस हदतक इन घटनाओंके होनेपर सनसनी और उत्तेजना फैलना कम होगा उसी हदतक इन घटनाओंकी नैतिक कीमत बढ़ गई समझना चाहिए। ऐसी गिरफ्तारियोंसे जिस दिन सनसनी फैलना समाप्त हो जायेगा उस दिन उन्माद भी जाता रहेगा। जो लोग उत्तेजनापूर्ण वातावरण न होते हुए भी अपनेको गिरफ्तार करा लेते हैं, वे ऐसा इसलिए करते हैं कि वे किसी न्यायपूर्ण उद्देश्यकी खातिर मनमें रोष लाये बिना कष्ट सहन के मूक परन्तु प्रभावयुक्त गुणके प्रति अतीव श्रद्धावान् हैं। आज चार सालसे सिख लोग गुरुद्वारा आन्दोलन सत्याग्रह के तरीकेसे चला रहे हैं। उनके अधिकांश नेता आज जेलमें हैं, फिर भी यह स्पष्ट है कि उनका उत्साह् मन्द नहीं हुआ है। उन्होंने बहुत अधिक कष्ट सहन किया है। उन्होंने मारपीट बरदाश्त की और गोलियोंकी वर्षा भी सिरपर झेली किन्तु प्रत्याक्रमण नहीं किया। उनके सैकड़ों वीर जेलोंमें डाल दिये गये हैं। ऐसी स्थितिमें विजय तो निश्चित