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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेका प्रयास कर रहे थे उस समय उनपर पत्थर फेंके गये। फलस्वरूप उनकी एक आँख जाती रही; किन्तु उन्होंने अपराधियोंको क्षमा कर दिया। उनपर मुकदमा चलाने को भी तैयार नहीं हुए और क्षतिपूर्ति के रूप में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई रकम भी उन्होंने नहीं ली। यह ऐसी मिसाल है जिसे मनसा-वाचा-कर्मणा अहिंसा कहा जा सकता है। यदि इस प्रकारकी अहिंसा यहाँ दृढ़तापूर्वक अपना ली जाये तो मैं शराब की दूकानोंपर फिरसे धरना जारी करानेके विचारपर अमल करनेमें संकोच नहीं करूँगा। परन्तु हम इस कार्यके अयोग्य सिद्ध हुए हैं। १९२१ में अनेक स्थानोंमें जो धरना दिया गया वह अहिंसासे कोसों दूर था। हमारे मन में सरकारको उलझन में डालने का विचार प्रधान था और पियक्कड़ोंको मद्यपानकी ओरसे विरत करने तथा उन्हें सुधारने का विचार गौण था। असहयोग के संघर्ष में राजनीतिको नैतिक उद्देश्यसे नीचा स्थान दिया जाता है और वह एक साधन के रूपमें अपनायी जाती है। यदि हम शराबीका सुधार कर सकें तो प्रशासन तथा प्रशासक, दोनोंका सुधार अपने- आप ही हो जाता है। परन्तु यदि हम शराबीको शराब पीनेकी आदतसे बलात् विरत करें तो हम कुछ समय के लिए सरकारको शराब या नशीली चीजोंसे होनेवाली आमदनीसे वंचित करते हैं, परन्तु जोर-जबरदस्ती के कारण शराब न पी सकनेवाला शराबी या धूमपान करनेवाला व्यक्ति मौका पाकर फिर शराब या धूमपान करने लगेगा और सरकारकी आमदनी फिर बढ़ जायेगी। जबतक हमारे पास पर्याप्त संख्यामें इस प्रकार के स्त्री-पुरुष न हों जो अपनी जानपर खेलकर भी शराबी के प्रति प्रेमकी भावनासे प्रेरित होकर ही धरना दे सकें तबतक हम फिर धरना देना शुरू करने की बात सोच भी नहीं सकते। मेरा खयाल है कि डाक्टर जॉन्सनने हमारी प्रशंसामें जो शब्द कहे हैं, हम उसके पात्र नहीं हैं। श्री एन्ड्रयूजके लेखको डाकमें छुड़वानेके पहले उसमें से मैं उक्त विषयक अनुच्छेदको निकाल देनेवाला था। परन्तु मैंने उसे इस खयालसे रहने दिया कि हमें अपने कर्त्तव्यका भान होता रहे और हमें उससे वैसी प्रशंसाका पात्र बनने की दिशा में प्रयास करनेकी प्रेरणा मिलती रहे।

खद्दर और शुचिता

एक सज्जनने मुझे एक पत्र भेजा है। उसके साथ दस रुपयेका एक नोट भी था। वे लिखते हैं : "यदि किसी व्यक्ति में आत्मसंयम, शुचिता, लगन इत्यादि गुण पूरे-पूरे नहीं हैं तो उसका खद्दर धारण करना पाप ही माना जायेगा।" उन्होंने यह भी लिखा है कि चूँकि वे इन गुणोंसे पूर्णतः विभूषित नहीं हैं इसलिए उनको खद्दर पहननेका साहस नहीं हो रहा है। मेरी कामना तो यह अवश्य है कि खद्दरकी वेशभूषा अपनानेवाले में उपरोक्त गुण हों; परन्तु उस हालत में बहुत ही कम लोग खद्दर पहन सकेंगे। पत्र-प्रेषकने खद्दरके गुणोंका अनावश्यक रूपसे बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है। खद्दरका एक विशिष्ट गुण यह है तथा वह गुण और किसी वस्तु में उतने प्रचुर प्रमाणमें नहीं है कि उसको अपनानेसे भारतकी आर्थिक समस्या हल होती है और देशसे भुखमरी मिटती है। खद्दरका यही गुण अपने-आपमें इस बात के लिए काफी होना चाहिए कि गरीब-अमीर सभी हाथ-कते सूतका कपड़ा पहनने लगें। अन्य किसी प्रकार के कपड़े को