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हाथ न लगायें। किसीका चरित्र कैसा भी क्यों न हो, हम सबको खद्दर तो पहनना चाहिए। लुच्चे-लफंगे, शराबी अथवा भद्रसे-भद्र पुरुष सभी लोगोंको खानेको अन्न और पहनने को कपड़ा तो चाहिए ही। मैं उन लोगोंसे अपने आन्तरिक जीवनकी पद्धतिको बदलने के लिए भले न कहूँ किन्तु खद्दर पहनने का आग्रह जरूर करूँगा। हमें चाहिए कि खद्दरमें जो गुण नहीं हैं उन गुणोंको उसपर आरोपित करना बन्द कर दें।

मुझे इसका पश्चाताप नहीं है

एक पत्र-प्रेषकने बड़े ही आवेशपूर्ण परन्तु सच्चे हृदयसे एक पत्र लिखा है और कहा है कि यदि मैं उचित समझूँ तो उसे प्रकाशित कर दूँ। पत्र-प्रेषक महोदय के प्रति समुचित आदर भाव रखते हुए मेरा विचार है कि उस पत्रको प्रकाशित करना आवश्यक नहीं है। परन्तु मैं इतना जरूर कर सकता हूँ कि दो-चार पंक्तियाँ पाठकोंके सामने रख दूँ ताकि वे अनुमान लगा सकें कि मूल पत्रमें क्या होगा।

अगर आप स्वराज्य पार्टीके पिछले तथा वर्तमान कार्योंकी भर्त्सना कड़ेसे-कड़े शब्दों में नहीं करेंगे तो आप सत्यके प्रति और इसी कारण ईश्वरके प्रति अपने कर्त्तव्यसे च्युत हो जायेंगे। यदि आप उनकी लानत-मलामत नहीं करेंगे तो उसका परिणाम आपके आन्दोलनके लिए घातक होगा...कृपया दूसरा बारडोली काण्ड घटित न होने दें।

उपर्युक्त वाक्यको प्रकाशित करने में मेरा उद्देश्य, अपने 'पतन' की भूमिका प्रस्तुत करना और इस प्रकार कुछ अंशोंमें उसकी तीव्रताको कम करना है। कौंसिल-प्रवेशके विषयमें मैं कोई भी वक्तव्य क्यों न दूँ, इतना जरूर जानता हूँ कि मैं किसी भी रूपमें स्वराज्यवादियोंकी निन्दा नहीं करूँगा। उनके और मेरे बीच जो मतभेद है उसे मैं कड़ेसे कड़े शब्दों में व्यक्त करूँ, यह बात अलग है; परन्तु भिन्न प्रकारके विचार रखनेके कारण ही मैं उनकी निन्दा नहीं कर सकता। उनकी बात उतने ही आदरके साथ सुनी जानी चाहिए जितने आदर के साथ मेरी या हममें से किसी बड़ेसे-बड़े नेता की। 'मेरा आन्दोलन' जैसी कोई वस्तु ही नहीं है। परन्तु जो भी आन्दोलन मेरे आन्दोलनके नामसे पुकारा जाये उस आन्दोलनके असफल होनेका तबतक कोई खतरा नहीं है जबतक मैं स्वयं असफल सिद्ध न हो जाऊँ। इसलिए पत्र-प्रेषककी मेरे प्रति जो चिन्ता है उसकी मैं कद्र तो जरूर करता हूँ, परन्तु मैं उनसे यही निवेदन करूँगा कि वे मेरी ओरसे निश्चिन्त रहें। इसका कारण यह है कि जहाँतक देख पाता हूँ वहाँतक तो इस बातका कोई खतरा नहीं दिखाई देता कि मैं आत्म-वंचना करूँगा। मैं समय रहते एक दूसरी बात भी सामने रख दूँ। बारडोलीमें जो-कुछ मैंने किया है, उसपर मुझे इतना अधिक गर्व है कि दूसरा बारडोली काण्ड घटित होनेकी पूरी-पूरी सम्भावना है। एक बहुत संगीन मौकेपर निश्छल रूपसे भूल स्वीकार कर लेनेके परिणामस्वरूप मेरा बहुत बड़ा लाभ हुआ है। उससे मैं पवित्र हुआ हूँ; और मेरा पक्का विश्वास है कि इस स्वीकारोक्तिसे आन्दोलनको भी लाभ पहुँचा है। इस भूलको मान लेने और कदम पीछे हटाने का फल यह निकला है कि उससे अहिंसाका पदार्थ-