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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तभी मैंने अपनी योजना बना ली और इस तरह दोनों पक्षोंको सन्तोष दिया। सरकारी पक्षका मन रखनेकी तो मुझे जरूरत ही नहीं थी। इसीसे गोखलेने[१] मुझे दो विशेषण दिये थे। मैं जितना कठोर हूँ उतना ही कोमल हूँ, ऐसा कहकर उन्होंने [भारत सेवक] समाज [सर्वेंट ऑफ इंडिया सोसाइटी के सदस्योंको मुझे समाजमें लेनेकी सलाह दी थी। लेकिन वे लोग केवल मेरी कठोरता ही देख सके। मैं रविवार और सोमवार सरतमें बिताऊँगा और मंगलवारको सुबह बारडोली जाऊँगा।।

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी
 

९. पत्र : टी॰ प्रकाशम् को

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
७ मार्च, १९२२

प्रिय प्रकाशम्[२],

आपने मेरे भावी कार्यक्रमके विषयमें पूछा है। मैंने अभी-अभी आपके नाम निम्नलिखित तार भेजा है :

"शनिवारतक अहमदाबादमें, रवि और सोमको सूरतमें, मंगलवारको बारडोली।"

पर यह सरकारकी मर्जीपर निर्भर है क्योंकि कानों में लगातार यही भनक पड़ रही है कि छुट्टी तो मुझे अबतक कभीकी मिल जानी थी। लोग यह भी कह रहे हैं कि सात दिनके अन्दर-ही-अन्दर मेरे सिरका बोझ उतर जायेगा। यदि वह शुभ घड़ी न आई तो उपर्युक्त कार्यक्रम बरकरार समझिए। यदि मैं गिरफ्तार कर लिया जाऊँ तो आपसे तथा उन अन्य कार्यकर्त्ताओंसे जो जेलके बाहर रहेंगे मेरी यही अपेक्षा रहेगी कि सर्वत्र पूरी शान्ति बनाये रखनेकी चेष्टा की जायेगी। देशमें शान्ति बनाये रखना ही मेरे प्रति अधिकसे-अधिक सम्मान प्रकट करना होगा। जेलमें रहते हुए यदि मुझे यह खबर मिली कि किसी असहयोगीने अथवा असहयोगीकी ओरसे किसीने एक भी व्यक्तिको जख्मी किया या उसका अपमान किया है अथवा किसी इमारतको नुकसान पहुँचाया तो मुझे बड़ा ही दुःख होगा। अगर जनता या कार्यकर्त्तागण मेरे सन्देशको तनिक भी समझ पाये हैं तो वे अनुकरणीय शान्ति कायम रखेंगे। मेरी गिरफ्तारीके दूसरे ही दिन यदि सारे हिन्दुस्तानमें सर्वथा स्वेच्छासे त्यागे हुए विदेशी कपड़ोंकी बिना किसी दबावके होली जलाई जाये और लोग केवल खदारको ही उपयोगमें लानेका दृढ़ संकल्प कर लें, तथा पर्याप्त खादी न मिलने तक [हिन्दू] लोग भारतके शानदार मौसमको देखते हुए एक छोटी धोतीसे काम चला लें

  1. गोपालकृष्ण गोखले (१८६६-१९१५)।
  2. टी॰ प्रकाशम् (१८७६-१९५७); स्वराज्यके सम्पादक, 'आन्ध्र-केसरी' के नामसे विख्यात मद्रासके मुख्यमन्त्री।