पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/५३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९५
टिप्पणियाँ

विले पारलेके स्कूलको विद्यापीठके साथ नहीं जोड़ा गया।[१] ऐसा हो सके इसके लिए शिक्षक और समिति के सदस्य प्रयत्न कर रहे हैं और इस प्रयत्नका अगला कदम अलग स्कूल खोलना है। इसलिए यह उदाहरण विद्यापीठसे सम्बन्ध रखनेवाले स्कूलोंपर तो लागू ही नहीं होत ।

अन्त्यज भाइयों द्वारा दिया गया अनुदान

बोटादके कुछ अन्त्यज भाइयोंने ३६ रुपये की रकम भेजी है। यह रकम भेजनेवाले भाई अपढ़ हैं। वे 'नवजीवन' के पाठक नहीं हैं; श्रोता मात्र हैं। रकम भेजनेवालोंके नाम प्रकाशित करनेका मुझसे आग्रह किया गया है और मुझे यह आग्रह स्वीकार करना पड़ा है। दलील यह है कि यदि उनके नाम 'नवजीवन' में प्रकाशित न किये जायें तो इन अपढ़ भाइयोंको अन्य किसी तरीकेसे मालूम ही नहीं होगा कि उनके भेजे हुए पैसे मुझे मिले हैं अथवा नहीं। इस दलील में मुझे वजन दिखाई दिया, इसलिए मैंने उन भाइयों के नाम प्रकाशित करनेका वचन दिया है। लेकिन मुझे उम्मीद है कि जो अन्य भाई, पैसे देना चाहते हों वे अपने नाम प्रकाशित करनेका दबाव मुझपर नहीं डालेंगे; में ऐसी आशा रखता हूँ। 'नवजीवन' के स्थानको मैं पैसेकी प्राप्ति स्वीकार से भरने की बजाय उसे बन्द करना अधिक अच्छा समझता हूँ। न्याय यह है कि हम जिसका विश्वास न करें उसे पैसा दें ही नहीं और हर किसी व्यक्तिको जो पैसा लेने आये, पैसा न दें। जाने-पहचाने और विश्वस्त व्यक्तिके आनेपर ही पैसे दिये जाने चाहिए। ऐसा हो तो पत्र में नाम प्रकाशित करनेकी जरूरत ही न रहे। जिन भाइयों के नाम मुझे भेजे गये हैं उनके पिताका नाम मैंने जगह बचानेकी खातिर छोड़ दिया है। जहाँ एकसे अधिक भाइयोंके नाम एक जैसे ही हैं वहाँ मैंने पिताका नाम रहने दिया।

निम्नलिखित भाइयोंने एक-एक रुपया दिया है :
[पन्द्रह नाम दिये गये थे।]
निम्नलिखित भाइयोंने आठ आने दिये हैं :
[सोलह नाम दिये गये थे।]
निम्नलिखित भाइयोंने चार आने दिये हैं:
[पाँच नाम दिये गये थे।]

वाघा रामजीभाईने दो रुपये और दूधाभाईने दस रुपये दिये हैं। गरीब भाइयोंकी इस भेंटको मैं अमूल्य मानता हूँ। इसका उपयोग केवल अन्त्यजोंसे सम्बन्धित कार्यपर ही किया जायेगा।

अस्पृश्यता निवारणका अर्थ

मैं देखता हूँ कि कितने ही ऐसे विषयोंके सम्बन्ध में जो मैं समझता था कि काफी स्पष्ट किये जा चुके हैं अब भी प्रश्न उठा करते हैं। कांग्रेसके प्रस्तावानुसार

  1. विद्यापीठकी सीनेटने ३१ अक्तूबर, १९२० को एक प्रस्ताव पास किया था जिसमें कहा गया था कि विद्यापीठ द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी स्कूलमें प्रवेश पानेसे अन्त्यजोंको वंचित नहीं रखा जा सकता।