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काबुलियोंका जुल्म

रखें, उनके लिए साफ रहने के साधन दुर्लभ अथवा अलभ्य कर दें और फिर उन्हें दोष दें, यह तो अन्यायकी परिसीमा है। हमारी शिथिलता और अत्याचार के कारण उनमें जो दोष घर कर गये हैं उन्हें दूर करने में उनकी मदद करना हमारा कर्त्तव्य है। और ऐसा किये बिना हिन्दुस्तानकी स्वतन्त्रताकी इच्छा करना तो सूर्यकी ओर पीठ करके सूर्य-दर्शन करनेकी आशा रखने के समान है।

झरिया में वचन भंग

मौलाना मुहम्मद अलीके साथ में जब झरिया[१] गया था तब वहाँ के लोगोंने तिलक स्वराज्य-कोष में अच्छी-खासी रकम देना स्वीकार किया था। बिहारमें रहनेवाले मारवाड़ी तथा गुजराती भाइयोंने बिहारकी ओरसे बहुत बड़ी रकम देना स्वीकार किया है। यह जानकर हम सब बहुत खुश हुए थे। वचन यह था कि रकम तुरन्त दे दी जायेगी। इस वचनको आज तीन वर्ष हो गये हैं। अब झरियासे इस आशयका पत्र प्राप्त हुआ है कि झरियाके कुछ खान मालिक कच्छी भाइयोंने अपनी लिखाई हुई रकम नहीं दी है। यह बात सबको खेदजनक जान पड़ेगी। दिये हुए वचनके पालनकी महिमा शास्त्र प्रसिद्ध है। जहाँ वचन भंग होते रहते हैं वहाँ प्रगति हो ही नहीं सकती। वचन-भंगसे कुटुम्बोंका और यहाँतक कि राष्ट्रोंका भी नाश हुआ है। नीति शास्त्र के अनुसार तो एकपक्षीय वचनका मूल्य द्विपक्षीय वचनकी अपेक्षा अधिक है और बोलकी कीमत लिखे हुए से कहीं अधिक होती है। उपर्युक्त भाइयोंका वचन एकपक्षीय होने के कारण उसके पालनका आधार केवल उनकी सत्यनिष्ठापर ही निर्भर है। मेरा उनसे अनुरोध है कि वे दिये गये वचनका पालन करें और यदि वे वचनकी कीमत समझें तो प्रायश्चित्त के रूपमें उसका दूना व्याज भी दें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०-४-१९२४
 

३५७. काबुलियोंका जुल्म

लोगों को काबुलियोंके[२] हाथों जो कष्ट भोगने पड़ते हैं, उनके सम्बन्धमें अखबारों में नित्य एक-न-एक खबर देखने में आती है। हमारे मन में यह बात बैठ गई मालूम होती है कि हमारे पास इससे बचनेका उपाय सिर्फ एक ही है। यदि सरकार हमारी रक्षा न करे तो हम बेबस बनकर बैठे रहते हैं।

असहयोगियोंने तो यह रास्ता खुद बन्द किया है। यदि वे सरकारसे मदद माँगें तो उनके असहयोग धर्मका लोप होता है और मदद माँगते हुए उन्हें शरमाना

  1. ५ फरवरी, १९२१ को।
  2. भारत-अफगानिस्तान सीमापर बसे पठान कबाइली, जो भारतके कुछ भागों में उस समय छोटा-मोटा व्यापार और कड़े सूदपर गरीब लोगों को रुपया उधार देनेका धन्धा करते थे और उन्हें बहुत तंग करते थे।

२३–३२