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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ठेका तो ले ही नहीं रखा है। बहुत सम्भव है, गुजरातमें मुझसे भी अधिक हृदयका बल रखनेवाले लोग हों। मेरी प्रार्थना उन्हींसे है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २०-४-१९२४
 

३५८. मेरे अनुयायी

एक सभाका विवरण मुझे प्राप्त हुआ है जिसमें एक सज्जन लिखते हैं :[१]

इस घटनाका हाल लिखनेवाले और पूर्वोक्त भाषण करनेवाले दोनों सज्जन इस बात को नहीं जानते कि मेरा अनुयायी सिर्फ एक है, और वह खुद मैं हूँ। इस एक अनुयायीको सँभालना ही मेरे लिए कठिन पड़ता है तो फिर दूसरोंकी तो बात ही क्या है? मेरा यह अनुयायी ऐसे खेल रचा करता है कि मैं कभी-कभी घबरा जाता हूँ। परन्तु मेरे सिद्धान्त इतने उदार हैं कि मैं उसपर दया करके उसकी भूलोंको दरगुजर कर देता हूँ और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता हूँ। मेरा यह प्रयत्न कुछ हदतक सफल भी होता है। परन्तु जबतक पूरी सफलता न मिले तबतक मैं दूसरे अनुयायी बनाकर क्या करूँगा? मैं अपूर्णतामें अपूर्णताको मिलाकर पूर्णता पानेकी आशा नहीं रखता। जब मैं अपने आपको अपना पूर्ण अनुयायी बना लूँगा तब सारे संसारको न्योता देने में मुझे लज्जा अथवा भय न मालूम होगा और संसार भी मेरा अनुसरण आसानीसे करेगा। अभी तो मैं अपने प्रयोगमें साथियोंको खोज रहा हूँ और में तथा मेरे साथी सत्याग्रही कहे जाते हैं। मैं सत्यका पूरा आग्रही हूँ। मैं आशा रखता हूँ कि ईश्वर मुझे आखिरी कसौटीपर भी खरा उतरनेकी शक्ति देगा और मुझे ऐसा विश्वास भी है। मैं सत्यमूर्ति नहीं हूँ। अभी तो यह स्थिति धवल-गिरिशिखरकी तरह मेरी पहुँच के बाहर मालूम होती है। वहाँ पहुँचने का प्रयत्न कोई साधारण बात नहीं है। मुझे अबतक जिन जीतोंका श्रेय दिया जा सकता है वे मुझे रास्ता चलते मिली हैं, ऐसा समझना चाहिए। ऐसी जीतें सत्याग्रहीके लिए अवलम्बन रूप होती हैं; वे उसे आशा बँधाती हैं। जब वह सत्यका साक्षात्कार कर लेता है तब तो वह करोड़ोंके हृदयोंका सम्राट् बन जाता है इसमें मुझे जरा भी सन्देह नहीं।

ऐसी अवस्था में यदि पूर्वोक्त सभापति महाशय मेरे साथी ही बनेंगे तो मैं इसे बहुत मानूँगा। इन सभापतिजीने अपने सिरपर एक बड़ी जिम्मेदारी उठा ली है । पिछले हफ्ते अपने "सत्याग्रह और समाज-सुधार" नामक लेख में मैं बता चुका हूँ कि सत्याग्रह कौन कर सकता है। सभापतिजी तथा दूसरे महाशय उसपर विचार और मनन करें।

  1. यह यहाँ नहीं दिया गया है। विवरणमें उक्त सभाके सभापतिके कुछ वाक्य उद्धृत किये गये थे। सभापति ने कहा था कि मैं तो साधारण आदमी हूँ परन्तु. . .महोदयने मुझे इस संग्राममें खींचा और गांधीजीका अनुयायी बना दिया।