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मेरे अनुयायी


सत्याग्रह शाश्वत सिद्धान्त है। उसका प्रयोग हम नवीन क्षेत्रमें कर रहे हैं। आजतक उसका प्रयोग व्यक्ति और कुटुम्बतक ही सीमित रहा है। उसकी सीमा हमने बढ़ा दी है। अब हम व्यक्तिसे समुदायपर चले गये हैं। मैं तो कितने ही प्रयोगों से यह जान चुका हूँ कि दोनों क्षेत्रोंमें उसका विस्तार सम्भव है। परन्तु हर बार शर्त यह थी कि नेताओंमें थोड़ी-बहुत मात्रामें वे गुण थे जो गत अंकमें बताये गये हैं और सिपाही सच्चे थे। यदि नेता कुशल हों, परन्तु सिपाही सच्चे न हों तो निष्फलता ही मिल सकती है, यह अनुभव हमें बारडोली सत्याग्रह के समय हुआ था।[१] और नेताओंकी कुशलता और सिपाहियों की सचाईका अनुभव हमने बोरसदमें किया था।[२] उनसे हमारा यह वहम बिलकुल दूर हो गया कि हरबार सत्याग्रह के समय मैं ही नेता रहूँ अथवा कमसे कम सलाहके लिए तो मेरी मौजूदगीकी जरूरत है ही? हमें यह कभी न भूलना चाहिए कि सफल सत्याग्रह के लिए सिर्फ तीन बातोंके मेलकी आवश्यकता है—कुशल और गुणी नेता, सच्चे सिपाही और शुद्ध ध्येय।

इन सभापति महाशय के उद्गार देशी राज्यों में होनेवाले सत्याग्रहके सम्बन्ध में हैं। अतः देशी राज्यों में सत्याग्रह करने की आवश्यकता के विषयपर भी कुछ विचार कर लेना जरूरी है। उदयपुर राज्य में बिजौलियाके राजपूत किसानोंने सत्याग्रह किया था और उसमें पूरी विजय प्राप्त की थी। वाइकोम त्रावणकोर राज्यमें है। वहाँ आज सत्याग्रह चल रहा है। परन्तु दोनोंमें कांग्रेसने दखल नहीं दी और उसे दखल देना भी नहीं चाहिए। मैं समझता हूँ कि यह सिद्धान्त स्वीकार किया जा चुका है कि देशी राज्यों में कांग्रेस न तो सत्याग्रह करे और न कराये। और यह ठीक भी है। कांग्रेसका ध्येय है ब्रिटिश भारतके लिए स्वराज्य प्राप्त करना। अतः यदि वह दूसरे भागों के सत्याग्रह में पड़ेगी तो यह अपनी हदसे बाहर जाना होगा। यदि कांग्रेसका ध्येय सिद्ध हो जाये तो देशी-राज्योंका प्रश्न अपने आप हल हो जायेगा। परन्तु इसके खिलाफ यदि देशी राज्योंको स्वराज्य मिल जाये तो उसका असर ब्रिटिश भारतपर शायद ही पड़ेगा। इसलिए देशी राज्योंके सत्याग्रहमें कांग्रेससे सहायता पानेकी आशा नहीं रखी जा सकती। देशी राज्यों में काम करनेवाले प्रत्येक कार्यकर्त्ताको यह बात समझ लेनी चाहिए।

परन्तु इस प्रतिबन्धका अर्थ यह नहीं है कि कांग्रेसका कोई सदस्य देशी रजवाड़ोंके सत्याग्रह में शरीक नहीं हो सकता। आज कांग्रेसके बाहर अनेक काम हो रहे हैं, और उनमें कांग्रेसके सदस्य सेवा कर रहे हैं। जो दूसरा सिद्धान्त प्रत्येक सेवकपर लागू होता है, वह कांग्रेसके सदस्योंपर भी लागू होता है। वह यह है कि वे कांग्रेसका जो काम करते हों उसे छोड़कर, उसे नुकसान पहुँचाकर, नया काम नहीं कर सकते। हमारे देश में ऐसी प्रथा पड़ गई है कि एक ही व्यक्ति अपने बूतेसे ज्यादा काम अपने सिरपर ले लेता है और फिर उसके सब काम थोड़े-बहुत परिमाणमें बिगड़ते हैं।

  1. बारडोली सत्याग्रह फरवरी १९२२ में चौरीचौराकी हिंसाके कारण स्थगित करना पड़ा था देखिए खण्ड २२।
  2. सन् १९२३-२४ के सत्याग्रह आन्दोलनमें।