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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देशी राज्यके अधिकारियोंके साथ पक्षपात किया है, क्योंकि वे देशी राज्यके हैं; परन्तु अंग्रेजी अधिकारियोंके प्रति मेरा विरोध-भाव रहता है, इसलिए कि वे विदेशी राज्यके प्रतिनिधि हैं। मेरे नजदीक तो ऐसा हरएक शासक विदेशी ही है जो लोकमतकी अवहेलना करता है। दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रहके जारी रहते हुए भी हिन्दुस्तानी आखिरी वक्त तक अधिकारियोंके साथ लिखा-पढ़ी करते रहते थे। पर ब्रिटिश भारतमें तो हम लोग असहयोग कर रहे हैं; और यह इसलिए कि हम इस पूरी शासन-प्रणालीको सुधारने या मिटा देनेपर तुले हुए हैं। अतएव प्रार्थना-पत्रोंका तरीका बेकार है।

त्रावणकोर में सत्याग्रहियोंका आक्रमण समूची प्रणालीपर नहीं है। बल्कि उसपर तो उनका हमला है ही नहीं। वे तो सिर्फ पण्डे-पुजारियों द्वारा फैलाये गये अन्धविश्वासों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं। त्रावणकोर राज्यका प्रवेश इसमें सिंहद्वारसे नहीं हुआ; उसका इससे सीधा सम्बन्ध ही नहीं है। ऐसी हालत में यदि सत्याग्रही अधिकारियोंसे बातचीत न करें और शिष्टमण्डलों, सभाओं आदिके द्वारा लोकमतको अपनी ओर न करें तो वे अपने रास्तेसे विचलित हुए कहलायेंगे। आमने-सामनेकी लड़ाईमें सर्वदा दूसरे सुसंगत उपायोंका बहिष्कार नहीं होता; और न सत्याग्रहियोंका प्रार्थना-पत्र आदि भेजना हमेशा ही कमजोरीका चिह्न माना जाता है। जिस व्यक्तिमें नम्रता न हो वह सत्याग्रही हरगिज नहीं है।

कुछ और खुलासा

मुझसे कहा गया है कि मैं अपनी इस दलीलको और स्पष्ट करूँ कि इस आन्दोलन में त्रावणकोरके बाहरसे सहानुभूतिके अलावा किसी और तरहकी सहायता न ली जाये। एक भेंटके[१] दौरान मैं इस सम्बन्ध में उपादेयताकी दृष्टिसे अपने विचार प्रकट कर चुका हूँ। परन्तु ऐसी सहायता लेने, या स्वीकार तक करने के सम्बन्धमें मूलभूत आपत्ति भी है। सत्याग्रह या तो अनेक कमजोर लोगोंके लिए चन्द त्यागी लोग करते हैं या भारी संकट पड़नेपर मुट्ठी भर लोग उसका प्रयोग करते हैं। पहली सूरत में, जो कि वाइकोमपर घटती है, अनेक लोग उत्सुक होते हुए भी कमजोर हैं। और कुछ लोग उत्सुक और समर्थ हैं तथा अछूतोंके लिए अपना सब कुछ बलिदान करनेके लिए तैयार भी हैं। ऐसी हालत में स्पष्ट है कि उन्हें किसी प्रकारकी बाहरकी सहायता की जरूरत नहीं है। पर मान लीजिए कि उन्होंने बाहरी इमदाद ली, तो इससे अछूत देशवासियोंका क्या हित होगा? जबतक वहाँके सबल हिन्दू आगे न बढ़ें तबतक निर्बल हिन्दुओंकी सबल प्रतिपक्षियोंके सामने कुछ न चलेगी। हिन्दुस्तानके अन्य प्रान्तोंसे सहायतार्थ आनेवाले लोगोंकी कुरबानीसे वहाँके विरोधियोंके दिल पसीजनेवाले नहीं हैं। बहुत सम्भव है कि इसके फलस्वरूप अछूत भाइयोंकी हालत पहलेसे भी ज्यादा खराब हो जाये। याद रखना चाहिए कि हृदयको परिवर्तित करनेके लिए एकमात्र सत्याग्रह ही अक्सीर इलाज है। सत्याग्रही तो हृदयको द्रवित करनेकी कोशिश करता है, हिन्दुस्तानके दूसरे प्रान्तोंसे दौड़-दौड़कर वाइकोममें जमा होनेवाले लोगों द्वारा यह सम्भव नहीं है।

  1. देखिए "भेंट : हिन्दूके प्रतिनिधिसे", १५–४–२४।