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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने वहाँ अद्भुत हार्दिक एकता तथा साहस पाया और अत्यन्त कुशल एवं साहसपूर्ण नेतृत्व के दृश्य देखे। मैंने तो कह दिया था कि मैं कांग्रेससे या आम जनता से इस बातकी सिफारिश नहीं कर सकता कि आपको किसी तरह की आर्थिक सहायता दी जाये। यही नहीं बल्कि मैंने यह भी कहा कि मैं कांग्रेसको प्रस्ताव पास करके आपको उत्साहित करने की सलाह भी न दे सकूँगा। यदि आपकी विजय हुई तो उसका श्रेय कांग्रेस लेगी क्योंकि यह हमारे तजवीज किये साधनकी विजय है, और यदि आपको असफलता मिली तो उससे कांग्रेसका कोई वास्ता न रहेगा। लोगोंने मेरी बात समझ ली और मेरी सलाहको स्वीकार भी कर लिया। आज तीन सालके गहरे और चिन्तन पूर्ण विचारके बाद भी मैं उस समय दी गई सलाहमें कुछ भी परिवर्तन करनेकी आवश्यकता नहीं देखता। उलटे मुझे तो यही दिखाई देता है कि यदि हम अपनी ऊँचाईतक उठना चाहते हों तो हमें जेलके तमाम नियमोंका ठीक-ठीक पालन करना ही पड़ेगा।

आगेका कार्य

कर्नाटक प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीने अपनी बैठक बुलाई और अगले अधिवेशनके स्थानके निर्णयके सम्बन्धमें अपने मतभेदोंको परस्पर निबटा लिया। प्रस्तावमें यह बात मान ली गई है कि चुनाव सम्बन्धी विधिमें त्रुटि है। साथ ही अपने पिछले निर्णयकी पुष्टि भी की है कि अधिवेशन बेलगाँव में हो। मैं उक्त कमेटीकी त्रुटियाँ दूर करने के प्रयास के लिए साधुवाद देता हूँ। गलतियाँ इन्सानसे ही होती हैं, यह कहना तभी ठीक है जब इन्सान अपनी गलती मानने को तैयार हो। मालूम पड़ जानेपर भी गलती करते जाना इन्सानियतसे बहुत घटकर है। कर्नाटकके सामने बहुत बड़ा काम पड़ा है। क्या वह रचनात्मक कार्यक्रमके सम्बन्धमें भारतके प्रान्तोंमें सबसे आगे बढ़ सकेगा? मुझे यकीन है कि वह ऐसा कर दिखायेगा। प्रश्न यह होना चाहिए कि क्या कर्नाटक सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने योग्य रचनात्मक कार्य कर दिखायेगा। उसके सामने ब्राह्मण और अब्राह्मणकी समस्या तो है ही । यदि कर्नाटकको ही भारत मान लें तो क्या वह ब्राह्मण-अब्राह्मणके बीच पारस्परिक अविश्वास रहते हुए भी पूर्ण स्वराज्यका उत्तरदायित्व वहन कर सकता है? मैं एक बात जानता हूँ, वह यह कि कमसे-कम एक दलको दूसरे सभी दलोंका मन जीतने के लिए अपना सर्वस्व त्याग देना चाहिए। यदि सभी दल एक-दूसरेके साथ सौदेबाजी करने की इच्छा रखें तो सवाल छोटे पैमानेपर हिन्दू-मुस्लिम समस्या-जैसा टेढ़ा हो जाता है। कठिन समस्याओंको हल करनेका एक ही मार्ग है कि प्रत्येक दल दूसरे दलके हितको अपना ही हित माने। ऐसा किये जानेपर ग्रन्थि अनायास ही खुल जाती है। जिस प्रकार एकाध-बार गाँठको खोलने के लिए हम सबसे पहले उसी धागेपर हाथ लगाते हैं जो पकड़ में बहुत जल्दी आ जाये, इसी प्रकार जो व्यक्ति सबसे मिलकर चलता है वह आपसके वैमनस्यको आसानी से मिटा सकता है। यदि स्वयंसेवक तथा कार्यकर्त्तागण सेवा करनेमें एक-दूसरेसे होड़ बदें, यदि ब्राह्मण अब्राह्मणों के सामने झुक जायें और अब्राह्मण ब्राह्मणों के सामने नरमी अख्तियार कर लें तो पूरे कर्नाटकको उसकी आवश्यकतानुसार खादी मिलनी सम्भव हो जाये; वहाँ इस प्रकारके राष्ट्रीय स्कूल खुल