पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/५४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५११
टिप्पणियाँ

जायें जिनमें एक ही कमरे में ब्राह्मण, अब्राह्मण, अन्त्यज, मुसलमान तथा दूसरे मतावलम्बियों के लड़के-लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त करें। इस तरह हिन्दू-मुस्लिम एकताका सही मार्ग खुल जायेगा और फलतः स्वराज्य प्राप्त करनेका सच्चा मार्ग दिखाई देने लगेगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि यदि कर्नाटक-सच्चे दिलसे और स्थायी रूपसे ब्राह्मण-अब्राह्मण समस्याको हल कर लेता है तो उसकी सभी और देशकी बहुतेरी समस्याओं का हल निकल आयेगा।

उदारताका एक दृष्टान्त

अक्सर हम केनिया में बसे हुए भारतीय प्रवासियोंके विरुद्ध यह सुना करते हैं कि चूँकि वे वहाँ के निवासियोंके हितकी परवाह नहीं करते इसलिए वतनियोंके हितों की दृष्टिसे उनके आव्रजनको सीमित कर देना चाहिए। यह आरोप तो सुननेमें बहुत आता है पर आजतक मैंने यह कभी नहीं सुना कि भारतीय प्रवासियोंने वतनियोंको कोई क्षति पहुँचाई है। भारतीय प्रवासी उदारताका ढोंग नहीं रचते। इसी कारण वे वतनियोंके लिए स्कूल नहीं खोलते और न वे उन लोगोंके बीच मिशनरी-कार्य करते हैं। परन्तु मैं यह दावेसे कह सकता हूँ कि भारतीय व्यापार चूँकि वतनियोंके सिरपर जबरदस्तका ठेंगा नहीं है इसीलिए प्रवासी भारतीयोंकी उपस्थिति-मात्र से ही वतनियोंका समाज सभ्यताकी ओर अग्रसर होता है।

परन्तु स्वभावतः प्रश्न यह उठता है कि क्या भारतीयों के यूरोपीय निन्दकोंकी उपस्थिति वतनियोंके लिए हितकारी है। केनियामें जो ब्रिटिश नीति बरती जा रही है उसकी तीव्र निन्दा करते हुए श्री एन्ड्रयूजने बहुत माकूल जवाब दिया है। उनका लेख आधुनिक ढंगकी परोपकारिताका एक सुन्दर चित्रण है। श्री एन्ड्रयूजने अपने तीव्र आलोचनात्मक लेखमें यह दिखा दिया है कि वहाँ गोरोंकी मौजूदगी वतनियोंके लिए कितनी मँहगी[१] पड़ रही है। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने श्री एन्ड्रयूजके मद्यपान सम्बन्धी लेखकी कटु आलोचना की है और उनके द्वारा पेश किये गये तथ्योंकी सत्यता को चुनौती दी है। श्री एन्ड्रयूजके 'व्हाइट मैन्स ट्रस्ट' नामक लेखमें उनके पिछले लेखकी अपेक्षा तथ्यों और आँकड़ों का बाहुल्य है। श्री एन्ड्रयूज जो कुछ भी लिखते हैं उसका उन्हें ज्ञान होता है। वे इतिहास के विद्यार्थी हैं। यदि उन्हें अपनी भूलका पता लग जाता है तो वे स्वयं ही तत्काल अपनी गलती कबूल कर लेते हैं, यह मैं जानता हूँ। और बारीकी से देखते रहने के आधारपर मैं यह कह सकता हूँ कि यद्यपि उन्होंने बहुत अधिक लिखा है तथापि उनसे गलतियाँ बहुत ही कम हुई हैं। मुझे इस बातपर आश्चर्य हो रहा है कि 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के लेखकने बिना पर्याप्त जानकारी के श्री एन्ड्रयूजके तथ्यों को गलत क्यों कहा। फिर भी मैं श्री एन्ड्रयूजकी कलमसे निकले कुछ दूसरे आँकड़े प्रस्तुत कर रहा हूँ और चुनौती के रूपमें (यदि ऐसा कहना ठीक हो) पेश किये जा रहे हैं। अन्यथा उनको पेश करनेका मेरा अभिप्राय इतना ही है कि मानव जातिके

  1. इस विषय में "द व्हाइट मैन्स बर्डन" शीर्षक लेख २४-४-१९२४ के यंग इंडिया में प्रकाशित हुआ था।