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अभिव्यक्तिकी स्वतन्त्रता


मेरा खयाल है कि मुझे अपने मतपर ही दृढ़ रहना चाहिए, जिसे मैं व्यक्त कर चुका हूँ और जिसपर श्री घनश्यामको एतराज है। मैंने वह मत नम्रताका दिखावा मात्र करनेकी गरजसे नहीं व्यक्त किया था। यदि मैंने संकोच या अटपटेपनका अनुभव किया होता, तो में घटनाका उल्लेख किये बिना भी रह सकता था किन्तु विनम्रताके कारण, वह वास्तविक हो या अवास्तविक, मैं पाठकोंको भ्रममें नहीं डालना चाहता था और इस प्रकार पत्रकारिताकी नैतिकतासे विचलित भी नहीं होना चाहता था; क्योंकि पत्रकारिताका तकाजा है कि वास्तविक मतको निर्भयता के साथ व्यक्त किया जाये। इसे तो सभी मानेंगे कि यदि किसी बातका कहना सत्यके हित में आवश्यक नहीं हो और यदि उसके कहने से दूसरेके मनमें रोष उत्पन्न होता हो तो उसे कहना नैतिकता के विरुद्ध है और आध्यात्मिकता के प्रतिकूल तो है ही। मेरी समझमें यह नहीं कहा जा सकता कि उल्लिखित तुलना सत्यकी खातिर की गई थी। यद्यपि मैं समझता हूँ कि ऐसी तुलनाएँ अवांछनीय होती है, तथापि में स्वीकार करता हूँ कि यदि ऐसी तुलनाएँ की जायें तो उनपर आपत्ति उठाना असहिष्णुताका द्योतक होता है। किन्तु उस मुसलमान विद्यार्थीने यह जानकर कि उस तुलनासे अनेक मुसलमानोंको चोट पहुँचेगी, आपत्ति उठाकर उचित ही किया। जब उसकी आपत्तिसे हिन्दू विद्यार्थियों में रोष उत्पन्न हुआ तब क्षमा-याचना करके उसने अपनी नेकनीयतीका परिचय दिया। यदि अभिव्यक्तिकी स्वतन्त्रताके नामपर हम ऐसे मत व्यक्त करनेका आग्रह करें, जिनसे किसीको चोट पहुँच सकती है, तो हम असहिष्णुताको अग्निको ही भड़कायेंगे। मैं श्री घनश्यामको बताना चाहता हूँ कि मेरे जेल जानेसे पहले एक धर्मनिष्ठ हिन्दूने मुझे पत्र लिखकर कृष्ण और रामसे मेरी तुलना किये जानेके प्रति घोर विरोध प्रकट किया था। निश्चय ही मैंने अपने पत्र लेखकसे इस बात में सहमति जताई थी कि ऐसी तुलना नहीं की जानी चाहिए। मैं उन परम्परानिष्ठ वैष्णवोंके प्रति सहानुभूति प्रकट करता हूँ जो धार्मिक भावनाको आवात पहुँचानेवाली तुलनासे क्षुब्ध होते हैं। मेरा निवेदन है कि दूसरोंकी भावनाओंका सूक्ष्म से सूक्ष्म और अधिकसे-अधिक ध्यान रखा जाये। सहिष्णुता के नामपर यदि हम परस्पर एक दूसरेके देवताओंको गालियाँ देने लगें तो यह बात कहानियों में उल्लिखित उस व्यक्ति के समान होगी, जिसने सोने के अंडे देनेवाली बत्तखको एक साथ सब अंडे पाने के लालच में मार डाला था।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २४–४–१९२४