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जेल के अनुभव—२

अनेक ब्रिटिश कर्मचारियोंमें व्यर्थकी अकड़ देखकर दुःख होता है, वह इनमें भी थी। उनकी इस कमजोरीके कारण कैदियोंके प्रति उनके मनमें अविश्वास रहता था। अपना कथन अधिक स्पष्ट करने के लिए मैं एक मजेदार उदाहरण देता हूँ। मैं आमतौरपर जितना खाता था उससे अधिक मुझे खाना चाहिए, इसकी उन्हें बड़ी चिन्ता थी। वे चाहते थे कि मैं मक्खन खाऊँ। मैंने कहा कि मैं केवल बकरीके दूधका ही मक्खन ले सकता हूँ। उन्होंने खासतौरपर हुक्म दिया कि बकरीका दूध तुरन्त मँगाया जाये और वह आ गया। परन्तु वह किस चीजके साथ लिया जाये, यह प्रश्न था। मैंने कहा कि मुझे थोड़ा आटा दीजिए। आटा दिया गया। परन्तु वह इतना अधिक मोटा था कि मुझे पचाना मुश्किल हो जाये। बारीक आटा मँगाने का हुक्म हुआ और मुझे २० पौंड आटा दिया गया। इतना आटा लेकर मैं क्या करता? रोटी में बनाता था अथवा भाई बैंकर बनाते थे। थोड़े समय बाद मुझे यह महसूस हुआ कि न मुझे आटेकी जरूरत है, न मक्खनकी। इसलिए मैंने कहा कि आटा ले जाइये और मक्खन देना बन्द कर दीजिये। परन्तु कर्नल डेलजील क्यों सुनने लगे? जो दे दिया गया, सो दे दिया गया। कदाचित् बादमें मन खानेको हो जाये। मैंने कहा कि सार्वजनिक धन इस प्रकार व्यर्थ बरबाद होता है। मैंने नम्रभावसे कहा कि जितनी चिन्ता मुझे अपने पैसेकी है उतनी ही सार्वजनिक घन की है। उनके चेहरेपर अविश्वासपूर्ण मुस्कराहट आई तो मैंने कहा, "सचमुच यह मेरा ही पैसा है।" उन्होंने तुरन्त कटाक्ष किया, "सरकारी खजाने में आपने कितना जमा कराया है?" मैंने नम्रतासे उत्तर दिया, "आप सरकारसे जो वेतन लेते हैं उसका एक अंश ही खजाने में देते हैं, जब कि मैं तो सब कुछ समर्पित किये हुए—मेरा श्रम, मेरी बुद्धि, मेरा सर्वस्व।" वे जोरोंसे खिलखिलाकर एक अर्थभरी हँसी हँसे। परन्तु मैं उससे अप्रतिभ नहीं हुआ, क्योंकि मैंने जो कुछ कहा था उसे मैं हृदयसे मानता था। रहने के लिए भव्य प्रासाद और बीस हजार रुपया वेतन पानेवाला वाइसराय, यदि उसका वेतन आय-करसे मुक्त न हो तो, अपनी आमदनीके थोड़े से भागके बराबर कर चुकाकर सरकारको जितना रुपया देता है उसकी अपेक्षा निर्वाह-भरके लिए मेहनत करनेवाला मेरे जैसा मजदूर सरकारको कहीं अधिक ही देता है। लाखों मजदूर मजदूरी करते हैं, इसीलिए वाइसरायको, और जिस शासनके वे प्रधान हैं उसके दूसरे संचालकोंको, वेतन मिल पाता है। फिर भी बहुत से अंग्रेज और भारतीय ईमानदारीसे यह मानते हैं कि वे सरकारकी सेवा ('सरकार' शब्दका वे जो भी अर्थ लगाते हों) मजदूरोंके मुकाबले कहीं अधिक करते हैं और साथ ही अपने पारिश्रमिकमें से राज्यतन्त्र चलाने के लिए अमुक भाग भी देते हैं। अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने की इस आधुनिक मान्यतासे अधिक बेतुकी कल्पना अथवा मिथ्या धारणा शायद ही कोई दूसरी हो।

परन्तु हम फिर उस बहादुर कर्नलकी बातपर वापिस आयें। कर्नल डेलजीलके दर्पपूर्ण अविश्वासका मैंने जान-बूझकर बढ़िया से बढ़िया नमूना दिया है। क्या पाठक विश्वास करेंगे कि वह आटा मुझे कर्नल डेलजीलके जाने और उनके स्थानपर मेजर जोन्स के आने तक सहेजकर रखना पड़ा था? बादमें कर्नल डेलजीलका जेलोंके स्थानापन्न इंस्पेक्टर जनरलके रूपमें तबादला हो गया।