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११. पत्र : मगनलाल गांधीको

बुधवार [८ मार्च, १९२२][१]

चि॰ मगनलाल[२],

डा॰ मेहताने[३] रतुके लिए एक आदमीकी माँग की है। उसका विचार करते हुए मुझे सुरेन्द्रकें[४] अलावा और कोई नहीं सूझता। इस कामके लिए धीरज, प्रेम और तितिक्षा चाहिए। सुरेन्द्रसे पूछना वह लिहाजके कारण हाँ न करे। वह रतुको साथ लेकर चाहे तो घूमे-फिरे और उसे जीत ले तो यहाँ ले आये। लेकिन यदि उसकी मर्जी न हो तो भले ही इनकार कर दे। तुम्हें इसका कोई दूसरा उपाय सूझे तो बताना। सुरेन्द्र जानेका विचार करे तो मुझसे बारडोलीमें मिल ले और फिर चला जाये। यदि वह जानेका निर्णय करे तो डाक्टरको तार देकर पूछना कि क्या हम सुरेन्द्रको भेजें। मैं यह पत्र अजमेर जाते हुए लिख रहा हूँ। वहाँसे शुक्रवारको वापस आऊँगा।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ५९८७) से। :सौजन्य : राधाबहन चौधरी
 

१२. पत्र : एस्थर मेननको[५]

अजमेर
८ मार्च, १९२२

रानी बिटिया,

यहाँ मैं केवल एक दिनके लिए आया हूँ। तुम्हें पत्र लिखनेका अवकाश मुझे यहीं मिल पाया है। तुम्हारी उछल-कूद भरी आजादी तो छिन गई; लेकिन दूसरे व्यक्ति के जीवन में भागीदार बनकर तुम उससे कुछ ज्यादा ही पा गई हो। विवाहका

  1. गांधीजी इस तारीखको अजमेर पहुँचे थे।
  2. मगनलाल खुशालचन्द गांधी (१८८३-१९२८ ); गांधीजीके भतीजे।
  3. डाक्टर प्राणजीवन मेहता, गांधीजी जब लन्दनमें विद्यार्थी थे, ये तभीसे उनके मित्र थे।
  4. सम्भवतः अहमदाबादके सुरेन्द्र मेढ़, जिन्होंने दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रह आन्दोलनमें भाग लिया था।
  5. एस्थर फैरिंगको गांधीजी अपनी बेटी मानते थे। वे भारतमें डेनिश मिशनरीकी तरह आई थीं और बादमें साबरमती आश्रम में रहने लगी थीं। कालान्तर में उन्होंने ई॰ के॰ मेननसे विवाह कर लिया था।