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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
३. नेतागण यदि किशोरों और नवयुवकोंको ठीक ढंगसे बात समझाते हैं, उनका मार्गप्रदर्शन और उनकी सहायता करते हैं तो उनपर अनुकूल प्रतिक्रिया होती है। वे हाथ बँटाने लगते हैं।
४. जबतक कार्यकर्त्ताओंके भरण-पोषणका प्रश्न कांग्रेस हल नहीं करती तबतक ठोस काम नहीं हो सकता, फिर चाहे मुट्ठी-भर कार्यकर्त्ता कितनी भी ईमानदारीसे काम क्यों न करें।
योग्यता तथा संगठन-शक्ति रखनेवाले लोगोंकी कमी के कारण काम बहुत का है। आन्दोलनके प्रति नेताओंकी उदासीनता के कारण तरुण कार्यकर्त्ताओंको निराशा हुई है। ये कार्यकर्ता अब एक-एक करके काम छोड़ते चले जा रहे हैं।

सूतका पार्सल भी प्राप्त हो गया है। उसे देखने से पता चलता है कि काम बेढंगा और भद्दा जरूर हुआ है, परन्तु ठोस हुआ है। ईमानदारीसे किये जानेवाले सभी कामों की तरह कताईका काम करनेके लिए भी परिश्रम, विचार, कौशल और एकाग्रताकी आवश्यकता है। अच्छे कातनेवालेको रुई धुनना ज़रूर जानना चाहिए, उसमें अपने कामके लायक पूनियाँ बनाने की योग्यता अवश्य होनी चाहिए। ये काम कठिन नहीं हैं, परन्तु इनमें लगन तो जरूरी है ही। जबतक कातनेवाले व्यक्ति अपने काममें पूरा रस नहीं लेते हैं और जैसे खोटे रुपयेको, जिसे भुनाकर सोलह आने न मिल सकें, रुपया नहीं कहा जा सकता, वैसे ही ये खराब सूतको, जो बुनने के काममें न आ सके, सूत कहने से इनकार न करें तो ठीक ढंगका सूत नहीं काता जा सकता। आशा है कि जिन लड़के-लड़कियोंने उस सप्ताह भर चरखा चलाया है वे अब नित्य थोड़ी देर भले ही आधा घंटा ही क्यों न हो सूत काता करेंगे। अगर वे इस प्रकार नियमित रूपसे और ठीक ढंगसे काम करेंगे तो उसका परिणाम इतना अच्छा निकलेगा कि उन्हें स्वयं आश्चर्य होगा।

श्री हार्डीकरने सामान्य कार्यके दोषोंके बारेमें जो बातें लिखी हैं, उनपर टिप्पणी करना आवश्यक नहीं है। मैं तो इतना ही कहूँगा कि कोई भी व्यक्ति साथ क्यों न छोड़ दे, कितनी भी निराशाका सामना क्यों न करना पड़े, हममें से जिन व्यक्तियोंको इस कार्यक्रम में आस्था है, उन्हें चाहिए कि वे दृढ़तापूर्वक और बिना रुके आगे बढ़ते जायें। राष्ट्रनिर्माण कोई जादूका करिश्मा नहीं है। इसमें कठिन परिश्रम करना होता है और कठिनतर दुःख सहने पड़ते हैं। कांग्रेस कार्यकर्त्ताओंको पारिश्रमिक देनेकी योजना बनाये या न बनाये; क्या इसका प्रबन्ध स्वयं प्रान्तीय संस्थाएँ नहीं कर सकतीं? कोई सर्वाधिक सुसंगठित प्रान्त कांग्रेस के सामने इस सम्बन्धमें उसी तरह एक आदर्श उपस्थित कर सकता है जिस तरह कांग्रेस सारे देशके सामने कर सकती है। जो इकाइयाँ सफलता प्राप्त कर चुकी होती हैं, वे ही लाभदायक परामर्श दे सकती हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २४–४–१९२४