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३६९. तार : के॰ एन॰ नम्बूद्रीपादको[१]

अन्धेरी
[२४ अप्रैल, १९२४ या उसके पश्चात्]

आप अनशन कदापि न करें। बाड़को न तोड़ें और न उसको लाँघें।सत्याग्रहियों के सामने यह सवाल नहीं होना चाहिए कि कौन-सी चीज प्रभावकारी प्रतीत होती है और कौन-सी नहीं; बल्कि यह कि उचित क्या है? पत्रकी प्रतीक्षामें।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०२९०) की फोटो-नकलसे।
 

३७०. सन्देश : 'बॉम्बे क्रॉनिकल 'को[२]

यदि हमारा यह संकल्प हो कि श्री हॉनिमनको भारत लौटने की अनुमति मिलनी ही चाहिए तो ऐसा होकर रहेगा। परन्तु वह इच्छा किस प्रकार व्यक्त की जाये? निःसन्देह्, शब्दों द्वारा नहीं। इस प्रश्नके समुचित उत्तरपर भारतकी और उससे भी ज्यादा बम्बईकी मान-प्रतिष्ठा निर्भर करती है।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २६–४–१९२४
  1. यह तार श्री नम्बूद्रीपादके निम्नलिखित तारके उत्तरमें भेजा गया था : "आपका १९ तारीखका तार आज प्राप्त हुआ। सत्याग्रह दृढ़तापूर्वक चल रहा है। है। अब जत्थोंकी संख्या बढ़ाकर छः कर दी गई है। आज सरकारने सब सड़कोंके किनारे बाद लगा दी है। कल रियासत के दीवानसे हम लोगोंकी बातचीत हुई। वे कहते थे कि अब उन सड़कोंको मन्दिरकी जायदाद घोषित करके उनपर मुसलमानों तथा ईसाइयोंका आना-जाना निषिद्ध कर देनेका विचार कर रहे हैं। वे यह भी कहते थे कि विरोधी पक्षकी ओरसे कभी-कभी मार-पीट भी हुई। इसकी और ज्यादा सम्भावना। सड़कें बन्द कर दिये जानेपर समितिने बाद तोड़ने या लाघनेपर और पूर्ण या आंशिक अनशन आरम्भ करनेपर विचार किया। अनुभवसे ऐसा प्रतीत होता है कि अनशनका उपाय ज्यादा प्रभावकारी होता है। विस्तृत पत्र भेज रहा हूँ। अगला कदम क्या हो सलाह दीजिए।"
  2. यह सन्देश बॉम्बे क्रॉनिकलके सम्पादक बी॰ जी॰ हॉर्निमनके निष्कासनका एक वर्ष पूरा होनेपर भेजा गया था। देखिए खण्ड १५, पृष्ठ ३५८-९।