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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विश्वासोंसे बहुत ऊँचे दर्जेंके हैं? यदि मेरा यह कहना सदोष न हो तो मौलाना साहब के कहने में भी कोई दोष नहीं है।

वर्तमान चर्चा में एक बात साफ तौरपर निखर उठती है और वह मानो इस अँधेरेमें आशाको किरण है। सब लोग यह प्रतिपादित करते हुए मालूम होते हैं कि आचार-हीन विचार बेकार हैं और अकेले शुद्ध विचारोंसे स्वर्ग नहीं मिल सकता। मौलाना साहबने अपना मन्तव्य बताने में कहीं भी इस बातका विरोध नहीं किया है। मुझे इसमें आशा की किरणें दिखाई देती हैं, क्योंकि अपनी श्रद्धाके अनुसार चलनेवाले तथा उसके प्रति अनास्था रखनेवाले दोनों ही सदाचारके पुजारी हैं।

परन्तु आचारकी पूजा करते हुए हमें विचारोंकी शुद्धताकी आवश्यकताको न भुला देना चाहिए। जहाँ विचारोंमें दोष होगा वहाँ आचार अन्तिम शिखरतक नहीं पहुँच सकेगा। रावण और इन्द्रजित् की तपस्या में किस बात की खामी थी? इन्द्रजित् के संयमका मुकाबला करनेके लिए लक्ष्मणके संयमकी आवश्यकता थी, यह बताकर आदिकविने आचारका महत्त्व सिद्ध किया है। परन्तु इन्द्रजित् के विचारोंमें, विश्वासमें आर्थिक वैभवको प्रधान पद प्राप्त था और लक्ष्मणके विश्वासमें वह पद परमार्थको प्राप्त था। अतएव अन्तमें कविने लक्ष्मणको जयमाला पहनाई। "यतो धर्मस्ततो जयः" का भी अर्थ यही है। यहाँ धर्मका अर्थ उच्चसे उच्च विचार अर्थात् विश्वास और उसके अनुसार उच्चसे उच्च आचार ही हो सकता है।

एक तीसरे प्रकारके भी लोग हैं। उनके लिए इस चर्चा में जगह ही नहीं है वे हैं ढोंगी! उनके पास विचारोंका–विश्वासोंका कोरा दावा तो है, किन्तु उनका आधार कोरा आडम्बर है। वास्तव में उनका कोई धार्मिक विश्वास ही नहीं होता। तोता राम-राम रटता है तो क्या इससे लोग उसे राम-भक्त कहेंगे? फिर भी हम दो तोतोंकी या तोते और मैंनाकी बोलियोंकी कीमत उनकी तुलना करके आँक सकते हैं।

परन्तु एक सज्जन कहते हैं :

मौलाना साहबने निडरता भले ही दिखाई हो किन्तु उसका लाभ देशको कितना मिला? हिन्दू-मुसलमानोंमें तनाव और बढ़ गया। संयमी गांधीसे अधम मुसलमान ऊंचा है, ये शब्द हिन्दुओंके दिलमें बाणकी तरह चुभ गये हैं। मौलाना साहबने तो मानो देशपर बमका गोला ही फेंक दिया है।

इन विचारोंको प्रकट करनेवाले मौलाना साहबके प्रेमी हैं। वे धर्मान्ध हिन्दू नहीं हैं। वे हिन्दुओंके ऐबोंको निष्पक्ष होकर देख सकते हैं। लेकिन सन्देहके वर्तमान वातावरणका असर उनपर भी हुआ है। पहले तो, जैसा मैं कह चुका हूँ, "संयमी गांधीसे अधम मुसलमान ऊँचा है", यह मौलानाने कहा ही नहीं। उन्होंने तो इतना ही कहा है कि "संयमो गांधोको धार्मिक मान्यतासे अधम मुसलमानकी धार्मिक मान्यता बढ़कर है।" मौलाना के विचार में और उनपर आरोपित विचारमें हाथी-घोड़ेका अन्तर है। एकमें दो व्यक्तियोंकी तुलना है, दूसरे में दो धार्मिक विचारोंकी। "संयमी गांधी" और "अधम मुसलमान" हमारी प्रयोजन-सिद्धिके लिए निरर्थक