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मेरी भाषा

हैं। मुख्य तो धार्मिक मान्यताएँ हैं। फिर ये मान्यताएँ भले ही 'क' या 'ख' की हों अथवा 'ग' या 'घ' की; तुलना व्यक्तियोंकी नहीं, उनके धार्मिक विचारोंकी है। उनके आचार तथा गुण-दोषोंका इस तुलनासे कुछ भी सम्बन्ध नहीं है।

अब हम इस बातपर विचार करें कि मौलानाको धार्मिक मान्यताओंके सम्बन्धमें अपने ये उद्गार प्रकट करनेकी आवश्यकता थी भी या नहीं। मौलाना साहब के और मेरे बीच दो भाइयोंका-सा सम्बन्ध है। इस कारण वे जहाँ-तहाँ मेरी स्तुति किया करते हैं। इन दिनों हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच कलह उत्पन्न करनेवालोंकी संख्या बढ़ गई है। उनमें से कुछ लोगोंने उनके लिए 'गांधी-परस्त' अर्थात् 'गांधी-पूजक' विशेषण लगाया है। ऐसा करनेमें उनका उद्देश्य यह था कि मुसलमानोंपर मौलानाका जो प्रभाव है वह कम हो जाये। अतः मौलानाने कहा कि में गांधीजीका पुजारी तो हूँ परन्तु गांधीजी मेरे धर्म-गुरु नहीं हैं। गांधीजीका धर्म मेरे धर्मसे जुदा है। धार्मिक विश्वास तो एक व्यभिचारी मुसलमानके जो हैं वे ही मेरे भी हैं और मैं उन्हें गांधीजीके धार्मिक विश्वासोंसे अधिक अच्छा समझता हूँ। यह मौलाना के भाषणका सार है। यदि वे ऐसी ही कुछ बात न कहें तो क्या कहकर वे अपना, मेरा और हमारे पारस्परिक सम्बन्धोंका तथा साथ ही अपनी दृढ़ धर्म-निष्ठाका खुलासा और बचाव कर सकते हैं और किस तरह आक्षेपकर्त्ताओंके आक्षेपोंका उत्तर दे सकते हैं?

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७–४–१९२४
 

३७२. मेरो भाषा

एक विद्वान् मित्र अत्यन्त सरल भावसे भाषाके प्रति और मेरे प्रति अपने प्रेमसे प्रेरित होकर लिखते हैं :[१]

उपर्युक्त दिलचस्प पत्र में कुछ अंग्रेजी वाक्य और शब्द गुजराती लिपिमें हैं और दो अंग्रेजी शब्द रोमन लिपिमें ही हैं। इससे अंग्रेजी न जाननेवाले अनेक गुजराती भाई-बहनोंको चोट पहुँचेगी। इसके लिए मैं उनसे क्षमा माँग लेता हूँ। यदि इसमें में कोई हेर-फेर करता तो उससे पत्रका माधुर्य और उसमें निहित सूक्ष्म विनोद बहुत हदतक कम हो जाता। अंग्रेजी न जाननेवाले व्यक्तिको भी इस पत्रके भावार्थंको समझने में कोई दिक्कत नहीं होगी।

यह तो पाठक आसानीसे समझ सकेंगे कि यह पत्र कोई प्रकाशित किये जानेके विचारसे नहीं लिखा गया है। अपने एक निजी पत्रमें पत्र लेखकने यह किस्सा अनायास ही जोड़ दिया है। लेकिन पत्रमें की गई टीका उचित है और पाठकों तथा

  1. इस निजी पत्रर्मे, जो यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है उक्त मित्रने गांधीजीके दक्षिण आफ्रिकाना सत्याग्रहनो इतिहास में व्यवहृत कुछ शब्दों और मुहावरोंके गलत प्रयोगकी ओर उनका ध्यान खींचा था।